Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीव विभक्ति - कल्पातीत के भेद . . 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - ईशान नामक दूसरे देवलोक में देवों की जघन्य-स्थिति कुछ अधिक एक पल्योपम और उत्कृष्ट-स्थिति कुछ अधिक दो सागरोपम की कही गई है।
सागराणि य सत्तेव, उक्कोसेण ठिई भवे। सणंकुमारे जहण्णेणं, दुण्णि उ सागरोवमा॥२२८॥
भावार्थ - सनत्कुमार नामक तीसरे देवलोक में देवों की जघन्य स्थिति दो सागरोपम की है और उत्कृष्ट सात सागरोपम की होती है।
साहिया सागरा सत्त, उक्कोसेण ठिई भवे। माहिंदम्मि जहण्णेणं, साहिया दुण्णि सागरा॥२२६॥
भावार्थ - माहेन्द्र नामक चौथे देवलोक में देवों की जघन्य स्थिति कुछ अधिक दो सागरोपम की है और उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक सात सागरोपम की होती है।
दस चेव सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे। बंभलोए जहण्णेणं, सत्त उ सागरोवमा॥२३०॥
भावार्थ - ब्रह्मलोक नामक पांचवें देवलोक में देवों की जघन्य स्थिति सात सागरोपम की है और उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम की होती है।
- विवेचन - नौ लोकान्तिक देवों की स्थिति आठ सागरोपम की (प्रमुख देव की अपेक्षा) स्थानांग सूत्र में बताई गई है। सामान्य देवों की अपेक्षा जघन्य स्थिति सात सागरोपम की समझी जाती है। ये देव ब्रह्मलोक के अंतर्गत गिने जाते हैं।
चउद्दस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे। लंतगम्मि जहण्णेणं, दस उ सागरोवमा॥२३१॥
भावार्थ - लान्तक नामक छठे देवलोक में देवों की जघन्य स्थिति दस सागरोपम है और उत्कृष्ट स्थिति चौदह सागरोपम की होती है। . सत्तरस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे।
महासुक्के जहण्णेणं, चउद्दस सागरोवमा॥२३२॥
भावार्थ - महाशुक्र नामक सातवें देवलोक में देवों की जघन्य स्थिति चौदह सागरोपम की है और उत्कृष्ट स्थिति सतरह सागरोपम की होती है।
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