Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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. उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
मनुष्यों का स्वरूप मणुया दुविह भेया उ, ते मे कित्तयओ सुण। सम्मुच्छिमा य मणुया, गब्भवक्कंतिया तहा॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - मणुया - मनुज - मनुष्य, सम्मुच्छिमा - सम्मूर्च्छिम, गब्भवक्कंतिया - गर्भव्युत्क्रान्तिक (गर्भज)।
भावार्थ - मनुष्य दो प्रकार के हैं, यथा - सम्मूर्छिम मनुष्य और गर्भव्युत्क्रान्तिक (गर्भज)। मैं उनका कीर्तन-कथन करता हूँ अतः सावधान होकर सुनो।
गब्भवक्कंतिया जे उ, तिविहा ते वियाहिया। कम्मअकम्मभूमा य, अंतरदीवया तहा॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - कम्मअकम्मभूमा - कर्मभूमिज अकर्मभूमिज, अंतरदीवया - अंतरद्वीपिक।
- भावार्थ - जो गर्भव्युत्क्रान्तिक (गर्भज) मनुष्य हैं, वे तीन प्रकार के कहे गये हैं, . कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज और अन्तरद्वीपिक।
पञ्जरस-तीसइविहा, भेया दुअट्ठवीसई। संखा उ कमसो तेसिं, इइ एसा वियाहिया॥२००॥
कालिन शब्दार्थ - पण्णरस - पन्द्रह, तीसइविहा - तीस भेद, दुअट्ठवीसइं भेया - छप्पन , संखा - संख्या, कमसो - क्रमशः।।
भावार्थ - कर्मभूमि के पन्द्रह, अकर्मभूमि के तीस और. अन्तरद्वीप के छप्पन भेद इस प्रकार उनकी क्रमशः यह संख्या कही गई है। _ विवेचन - चुल्लहिमवान् पर्वत के पूर्व और पश्चिम विदिशा में अट्ठाईस अन्तरद्वीप हैं, इसी प्रकार शिखरी पर्वत के पूर्व और पश्चिम विदिशा में भी अट्ठाईस अन्तरद्वीप हैं। सब मिला कर छप्पन अन्तरद्वीप हैं, इसलिए गाथा में 'दुअट्टवीसई' शब्द दिया है। अर्थात् अट्ठाईस को दो वक्त गिनना चाहिये। इससे ५६ की संख्या पूरी होती है। दूसरी प्रायः सब प्रतियों 'अट्टवीसई शब्द दिया है। इससे ज्ञात होता है कि वहाँ दूसरी तरफ के अन्तर द्वीपों को गौण कर दिया है।
सम्मुच्छिमाण एसेव, भेओ होइ वियाहिओ। . लोगस्स एगदेसम्मि, ते सव्वे वि वियाहिया॥२०१॥
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