Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 430
________________ जीवाजीव विभक्ति - कल्पातीत के भेद अर्थ - भवनपति और वैमानिकों में दस ही भेद होते हैं किन्तु वाणव्यंतर एवं ज्योतिषियों में त्रायस्त्रिंश तथा लोकपाल, ये दो भेद नहीं होते हैं। शेष आठ भेद होते हैं। तात्पर्य यह है कि - भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी देवों में भी कल्पोपपन्नकता है। इनमें कल्पातीत नहीं होते हैं । इसीलिए इनमें दो भेद नहीं किये। सिर्फ वैमानिक देवों में कल्पोपपन्न और कल्पातीत ऐसे दो भेद होते हैं। कल्पोपपत्र के भेद कप्पोवगा य बारसहा, सोहम्मीसाणगा तहा । सणंकुमारमाहिंदा, बंभलोगा य लंतगा ॥ २१३ ॥ महासुक्का सहस्सारा, आणया पाणया तहा । आरणा अच्चुया चेव, इइ कप्पोवगा सुरा ॥ २१४॥ भावार्थ - कल्पोपपन्न देव द्वादशधा बारह प्रकार के हैं, यथा सौधर्म, ईशान, सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आणत, प्राणत, आरण और अच्युत । ये कल्पोपन्न देव हैं। - Jain Education International ४०५ कल्पातीत के भेद कप्पाईया उ जे देवा, दुविहा ते वियाहिया । विज्जाणुत्तरा चेव, गेविज्जा णवविहा तहिं ॥ २१५ ॥ भावार्थ - जो कल्पातीत देव हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं- ग्रैवेयक और अनुत्तर। इनमें ग्रैवेयक देव नौ प्रकार के हैं। ट्टिमा हेट्ठिमा चेव, हेट्ठिमा मज्झिमा तहा । हेट्ठिमा उवरिमा चेव, मज्झिमा हेट्ठिमा तहा ।। २१६ ॥ मज्झिमा मज्झिमा चेव, मज्झिमा उवरिमा तहा । उवरिमा हेट्ठिमा चेव, उवरिमा मज्झिमा तहा ।। २१७ ।। उवरिमा उवरिमा चेव, इय गेविज्जगा सुरा । विजया वेजयंता य, जयंता अपराजिया ॥२१८॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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