Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 419
________________ ३६४ उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन commommemoroommmmmmmmmcommoncommonocc000000000000 अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहण्णयं। विजढम्मि सए काए, थलयराणं तु अंतरं॥१८६॥ भावार्थ - अपनी काया को छोड़ने पर स्थलचर जीवों का उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकालं का और जघन्य अन्तर्मुहूर्त का है। विवेचन - भगवती सूत्र के २४वें शतक में तथा उत्तराध्ययन सूत्र के १० वें अध्ययन की तेरहवीं गाथा में बताया गया है कि - तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव, तिर्यंच पंचेन्द्रिय के लगातार भव करे तो उत्कृष्ट ८ भव कर सकता है। यहाँ उत्कृष्ट स्थिति की अपेक्षा एक करोड़ पूर्व, एक करोड़ पूर्व के ७ भव और आठवाँ भव युगलिक का तीन पल्योपम की स्थिति वाला करे तो सात करोड़ पूर्व सहित तीन पल्योपम की स्थिति उत्कृष्ट कायस्थिति बन सकती है।. . एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रस-फासओ। संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो॥१०॥ भावार्थ - वर्ण से, गन्ध से, रस से, स्पर्श से और भी संस्थान की अपेक्षा इन स्थलचर जीवों के सहस्रश - हजारों भेद हो जाते हैं। नभचर जीवों का स्वरूप चम्मे य लोमपक्खी य, तइया समुग्गपक्खिया। विययपक्खी य बोधव्वा, पक्खिणो य चउव्विहा॥११॥ कठिन शब्दार्थ - चम्मे - चर्मपक्षी, लोमपक्खी - लोम(रोम)पक्षी, समुग्गपक्खियासमुद्गक पक्षी, विययपक्खी - विततपक्षी। भावार्थ - चर्मपक्षी (जिनके पंख चमड़े के हों, जैसे चमगादड़ आदि), रोमपक्षी (रोम के पंख वाले, जैसे राजहंस आदि), तीसरे समुद्गकपक्षी (जिनके पंख सदैव बन्द रहते हैं) और विततपक्षी (जिनके पंख सदैव खुले रहते हैं) इस प्रकार चार प्रकार के पक्षी जानने चाहिए। . विवेचन - समुद्गकपक्षी और विततपक्षी, ये दोनों प्रकार के पक्षी मनुष्य क्षेत्र के बाहर के द्वीपसमुद्रों में होते हैं, यहाँ नहीं होते अर्थात् ढाई द्वीप में चर्मपक्षी और रोमपक्षी ये दो तरह के ही पक्षी होते हैं। बाहर के द्वीप समुद्रों में चारों प्रकार के पक्षी होते हैं। लोएगदेसे ते सव्वे, ण सव्वत्थ वियाहिया। इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउव्विहं॥१९२॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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