Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - इन नरक जीवों के वर्ण से, गन्ध से, रस से, स्पर्श से और संस्थान की अपेक्षा से भी सहस्रश - हजारों भेद हो जाते हैं।
तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों का स्वरूप पंचिंदियतिरिक्खाओ, दुविहा ते वियाहिया। सम्मुच्छिम-तिरिक्खाओ, गब्भवक्कंतिया तहा॥१७३॥
कठिन शब्दार्थ - पंचिंदियतिरिक्खाओ - पंचेन्द्रिय तिर्यंच, सम्मुच्छिम-तिरिक्खाओसम्मूर्छिम तिर्यंच, गब्भवक्कंतिया - गर्भव्युत्क्रान्तिक।
भावार्थ - जो पंचेन्द्रिय तिर्यंच हैं, वे दो प्रकार के कहे गये हैं - सम्मूर्छिम तिर्यंच और गर्भव्युत्क्रान्तिक (गर्भज) तिर्यंच।
दुविहा ते भवे तिविहा, जलयरा थलयरा तहा। णहयरा य बोधव्वा, तेसिं भेए सुणेह मे॥१७४॥ कठिन शब्दार्थ - जलयरा - जलचर, थलयरा - स्थलचर, णहयरा - नभचर।.
भावार्थ - दो प्रकार के उन तिर्यंचों के भी प्रत्येक के तीन-तीन भेद जानने चाहिये। यथा - जलचर, स्थलचर और नभचर (खेचर)। अब उनके भेदों को मुझ से सुनो।
जलचर वर्णन मच्छा य कच्छभा य, गाहा य मगरा तहा। सुंसुमारा य बोधव्वा, पंचहा जलयराहिया॥१७५॥
कठिन शब्दार्थ - मच्छा - मच्छ, कच्छभा - कच्छप, गाहा - ग्राह, मगरा - मकर, सुंसुमारा - सुंसुमार, जलयरा - जलचर, आहिया - कहे गये हैं।
भावार्थ - जलचर जीव, पांच प्रकार के कहे गये हैं, वे इस प्रकार जानने चाहिए। यथा - मच्छ, कच्छप (कच्छुआ), ग्राह, मकर और सुंसुमार। .
लोएगदेसे ते सव्वे, ण सव्वत्थ वियाहिया। इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउव्विहं॥१७६॥ 'भावार्थ - वे सभी जलचर जीव लोक के एक देश में कहे गये हैं, वे सर्वत्र नहीं हैं। अब आगे उन जीवों के चार प्रकार के कालविभाग को कहूँगा।
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