Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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लेश्या - चारों गतियों में लेश्याओं की स्थिति
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कठिन शब्दार्थ - पुव्वकोडी - करोड़ पूर्व, णवहिं - नौ, वरिसेहिं - वर्ष, ऊणा - कम।
भावार्थ - केवली की शुक्ल-लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट स्थिति नौ वर्ष कम, एक करोड़ पूर्व की होती है, ऐसा जानना चाहिए।
विवेचन - एक करोड़ पूर्व वर्ष की उम्र वाला कोई व्यक्ति नौ वर्ष की उम्र में दीक्षा ले और उसी दिन उसे केवलज्ञान हो जाय उस अपेक्षा से शुक्ललेश्या की यह स्थिति समझनी चाहिए।
एसा तिरिय-णराणं, लेसाण ठिई उ वण्णिया होइ। तेण परं वोच्छामि, लेसाण ठिई उ देवाणं॥४७॥
भावार्थ - यह तिर्यंच और मनुष्यों की लेश्याओं की स्थिति का वर्णन हुआ। इसके आगे देवताओं की लेश्याओं की स्थिति का वर्णन करूँगा।
दसवास-सहस्साइं, किण्हाए ठिई जहणिया होइ। पलियमसंखिज्जइमो, उक्कोसा होइ किण्हाए॥४८॥
भावार्थ - कृष्णलेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार तर्ष की होती है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग होती है।
जा किण्हाए ठिई खलु, उक्कोसा सा उ समयमब्भहिया। जहण्णेणं णीलाए, पलियमसंखं च उक्कोसा॥४६॥
कठिन शब्दार्थ - समयमभहिया - एक समय अधिक, पलियमसंखं - पल्योपम का असंख्यातवां भाग अधिक।
- भावार्थ - कृष्णलेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति है उससे एक समय अधिक नील-लेश्या की जघन्य स्थिति है और पल्योपम का असंख्यातवां भाग अधिक उत्कृष्ट स्थिति है।
जा णीलाए ठिई खलु, उक्कोसा साउ समयमभहिया। जहण्णेणं काऊए, पलियमसंखं च उक्कोसा॥५०॥
भावार्थ - नील लेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति है उससे एक समय अधिक कापोत-लेश्या की जघन्य स्थिति है और पल्योपम का असंख्यातवां भाग अधिक उत्कृष्ट स्थिति है।
तेण परं वोच्छामि, तेऊ लेसा जहा सुरगणाणं। . भवणवइ-वाणमंतर, 'जोइस-वेमाणियाणं च॥५१॥
कठिन शब्दार्थ - तेण परं - इसके आगे, सुरगणाणं - देवों के समूह में, भवणवइवाणमंतर - भवनपति वाणव्यंतर, जोइस - ज्योतिषी, वेमाणियाणं - वैमानिक।
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