Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - जीवा - जीव, अजीवा - अजीव, एस - यह, लोए - लोक, वियाहिए - कहा गया है, अजीव देसं - अजीव का देश, आगासे - आकाशरूप, अलोएअलोक।
भावार्थ - जीव और अजीव रूप यह लोक कहा गया है। अजीव का एक देश आकाश (जहाँ केवल आकांश ही हो) वह अलोक कहा गया है।
विवेचन - अजीव का अंश, अजीव देश कहलाता है और यह अजीव देश धर्मास्तिकाय आदि द्रव्यों से रहित सिर्फ आकाश रूप है। इसी को ज्ञानी पुरुष अलोक कहते हैं। क्योंकि अलोक में सिर्फ आकाश द्रव्य ही है।
दव्वओ खेत्तओ चेव, कालओ भावओ तहा। परूवणा तेसिं भवे, जीवाणमजीवाण य॥३॥
कठिन शब्दार्थ - दव्वओ - द्रव्य से, खेत्तओ - क्षेत्र से, कालओ :- काल से, भावओ - भाव से। .. .
भावार्थ - उन जीव और अजीवों की प्ररूपणा द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से होती है।
विवेचन - जिसमें चैतन्य लक्षण हो वह जीव और जो चेतन से रहित हो, वह अजीव कहलाता है। द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव - इन चार प्रकारों से जीव और अजीव द्रव्य का निरूपण किया जाता है।
अजीव का स्वरूप रूविणो चेव अरूवी य, अजीवा दुविहा भवे। अरूवी दसहा वुत्ता, रूविणो य चउविहा॥४॥
कठिन शब्दार्थ - रूविणो - रूपी, चेव - और, अरूवी - अरूपी, चउव्विहा - चार प्रकार का।
भावार्थ - अजीव के दो भेद हैं - रूपी और अरूपी। अरूपी दस प्रकार का कहा गया है और रूपी चार प्रकार का कहा गया है।
विवेचन - जिनमें वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श पाये जाते हैं, उन्हें 'रूपी' कहा जाता है और जिनमें वर्ण, गंध, रस, स्पर्श नहीं पाये जाते, उनको 'अरूपी' कहा जाता है।
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