Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
जीवाजीव विभक्ति - रूपी अजीव का निरूपण
३५३ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
रसओ तित्तए जे उ, भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य॥३०॥
भावार्थ - रस की अपेक्षा जो पुद्गल तिक्त - तीखा है, उसकी वर्ण से, गन्ध से, स्पर्श से और संस्थान से भी भजना समझनी चाहिए अर्थात् पांच वर्ण, दो गंध, आठ स्पर्श और पांच संस्थान, इन २० बोलों की भजना है।
रसओ कडुए जे उ, भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य॥३१॥
भावार्थ - रस की अपेक्षा जो पुद्गल कटुक - कडुआ है, उसकी वर्ण से, गंध से, स्पर्श से और संस्थान से भी भजना समझनी चाहिए।
रसओ कसाए जे उ, भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य॥३२॥
भावार्थ - रस की अपेक्षा जो पुद्गल कषैला है, उसकी वर्ण से, गन्ध से, स्पर्श से और संस्थान से भजना समझनी चाहिए।
रसओ अंबिले जे उ, भइए से उ वण्णओ। गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य॥३३॥
भावार्थ - रस की अपेक्षा जो पुद्गल अम्ल (खट्टा) है, उसकी वर्ण से, गन्ध से, स्पर्श से और संस्थान से भी भजना समझनी चाहिए। - रसओ महुरए जे उ, भइए से उ वण्णओ।
गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओ वि य॥३४॥
भावार्थ - रस की अपेक्षा जो पुद्गल मधुर है, उसकी वर्ण से, गन्ध से, स्पर्श से और संस्थान से भी भजना समझनी चाहिए।
फासओ कक्खडे जे उ, भइए से उ वण्णओ। . गंधओ. रसओ चेव, भइए संठाणओ वि य॥३५॥
भावार्थ - स्पर्श की अपेक्षा जो पुद्गल कर्कश (कठोर) स्पर्श वाला है, उसकी वर्ण से, गन्ध से, रस से और संस्थान से भी भजना समझनी चाहिए अर्थात् पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और पांच संस्थान, इन १७ बोलों की भजना समझनी चाहिए। जहाँ ६ स्पर्शों की विवक्षा की गई है वहाँ २३ बोलों की भजना समझनी चाहिए।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org