Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीव विभक्ति - सिद्ध जीवों का स्वरूप
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कठिन शब्दार्थ - इत्थी - स्त्रीलिंग, पुरिस - पुरुषलिंग, सिद्धा - सिद्ध, णपुंसगा - नपुंसकलिंग, सलिंगे - स्वलिंग, अण्णलिंगे - अन्यलिंग, गिहिलिंगे - गृहस्थ लिंग।
भावार्थ - स्त्रीलिंग-सिद्ध, पुरुषलिंग-सिद्ध, नपुंसकलिंग-सिद्ध, स्वलिंग-सिद्ध, अन्यलिंगसिद्ध, गृहस्थलिंग-सिद्ध और तीर्थसिद्ध, अतीर्थसिद्ध आदि सिद्धों के भेद हैं। .
विवेचन - दिगम्बर सम्प्रदाय स्त्री की मुक्ति नहीं मानती किन्तु श्वेताम्बर आगमों में स्त्री की मुक्ति होने का स्पष्ट वर्णन है। जैसा कि यहाँ बतलाया गया है। गृहस्थ वेश में रहते हुए या अन्य मतावलम्बियों के वेश में रहते हुए किसी साधु-साध्वी का सम्पर्क होने पर या जातिस्मरण ज्ञान होने से पूर्वभव को देखने पर केवली प्ररूपित धर्म पर श्रद्धा दृढ़ होकर भाव चारित्र की प्राप्ति हो जाय और क्षपक श्रेणि पर चढ़ कर केवलज्ञान की प्राप्ति हो जाय और उसी समय आयुष्य भी समाप्त हो जाय, वेश परिवर्तन करने जितना समय न रहे तो उसी वेश में सिद्ध हो सकता है। जैसे कि - मरुदेवी माता तथा वल्कल चीरी (अन्यलिंग सिद्ध)। गृहस्थ लिंग या अन्य लिंग में केवलज्ञान हो जाय और आयुष्य शेष रहे तो उस वेश को छोड़ कर स्वलिंग अवश्य धारण करते हैं जैसे - भरत चक्रवर्ती।
उक्कोसोगाहणाए य, जहण्णमज्झिमाइ य। उड़े अहे य तिरियं च, समुद्दम्मि जलम्मि य॥५१॥ .
कठिन शब्दार्थ - उक्कोसोगाहणाए - उत्कृष्ट अवगाहना में, जहण्ण - जघन्य, मज्झिमाइ - मध्यम, उद्धं - ऊर्ध्वलोक, अहे - अधोलोक, तिरियं - तिर्यग्लोक, समुद्दम्मिसमुद्र में, जलम्मि - जलाशय में। .
भावार्थ - जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट प्रकार की अवगाहना में सिद्ध हो सकते हैं। ऊर्ध्वलोक में (मेरु चूलिका आदि पर) अधोलोक और तिर्यग्लोक में तथा समुद्र में और जलाशय में सिद्ध हो सकते हैं।
विवेचन - प्रतिक्रमण की पुस्तक में सिद्धों के पन्द्रह भेद और चौदह प्रकार का कथन आता है। पन्द्रह भेदों के नाम तो (तीर्थसिद्ध आदि) गिना दिये हैं किन्तु वहाँ १४ प्रकार नहीं बताये गये हैं। वे चौदह प्रकार यहाँ दो गाथाओं में बतलाये गये हैं।
छह प्रकार पचासवीं गाथा में बतलाये गये हैं, शेष आठ प्रकार ५१ वीं गाथा में बतलाये गये हैं - व्यक्तिशः विभाग को भेद कहते हैं। तरीका, रीति को प्रकार कहते हैं।
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