Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 383
________________ ३५८ उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 दस य णपुंसएसुं, बीसं इत्थियासु य। पुरिसेसु य अट्ठसयं, समएणेगेण सिज्झइ॥५२॥ कठिन शब्दार्थ - णपुंसएसुं - नपुंसक लिंग में, इत्थियासु - स्त्रीलिंग में, पुरिसेसु - पुरुषलिंग में, अट्ठसयं - एक सौ आठ, समएण - समय में, एगेण - एक, सिज्झइ - सिद्ध होते हैं। भावार्थ - नपुंसक-लिंग में दस, स्त्रीलिंग में बीस और पुरुषलिंग में एक सौ आठ एक समय में सिद्ध हो सकते हैं। चत्तारि य गिहिलिंगे, अण्णलिंगे दसेव य।। सलिंगेण अट्ठसयं, समएणेगेण सिज्झइ॥५३॥ कठिन शब्दार्थ - गिहिलिंगे - गृहस्थलिंग में, अण्णलिंगे - अन्य लिंग में, सलिंगेणस्वलिंग से। भावार्थ - गृहस्थ-लिंग में चार, अन्यलिंग में दस और स्वलिंग से एक सौ आठ एक समय में सिद्ध हो सकते हैं। उक्कोस्सोगाहणाए य, सिझंते जुगवं दुवे। चत्तारि जहण्णाए, जवमज्झट्टत्तरं सयं॥५४॥ कठिन शब्दार्थ - सिझंते - सिद्ध हो सकते हैं, जुगवं - एक साथ, दुवे - दो, जहण्णाए - जघन्य से, जवमझ - जवमध्य - मध्यम अवगाहना में, अट्ठत्तरं सयं - एक सौ आठ। . भावार्थ - उत्कृष्ट अवगाहना से दो, जघन्य अवगाहना से चार और जवमध्य (मध्यम) अवगाहना में एक सौ आठ युगपत् - एक समय में एक साथ सिद्ध हो सकते हैं। चउरुहलोए य दुवे समुद्दे, तओ जले वीसमहे तहेव य। सयं च अटुत्तरं तिरिय लोए, समएणेगेण सिज्झइ ध्रुवं ॥५५॥ . . कठिन शब्दार्थ - चउरुडलोए - ऊर्ध्वलोक में चार, जले - जलाशयों में, वीसं - बीस, अहे - अधोलोक में, तिरिय लोए - तिर्यग्लोक में। - भावार्थ - ऊर्ध्वलोक में (मेरु चूलिका आदि पर). चार, समुद्र से दो, नदी जलाशय आदि के जल में तीन, अधोलोक में बीस और तिर्यग्लोक में एक सौ आठ एक समय में निश्चय ही सिद्ध हो सकते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450