Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
दस य णपुंसएसुं, बीसं इत्थियासु य। पुरिसेसु य अट्ठसयं, समएणेगेण सिज्झइ॥५२॥
कठिन शब्दार्थ - णपुंसएसुं - नपुंसक लिंग में, इत्थियासु - स्त्रीलिंग में, पुरिसेसु - पुरुषलिंग में, अट्ठसयं - एक सौ आठ, समएण - समय में, एगेण - एक, सिज्झइ - सिद्ध होते हैं।
भावार्थ - नपुंसक-लिंग में दस, स्त्रीलिंग में बीस और पुरुषलिंग में एक सौ आठ एक समय में सिद्ध हो सकते हैं।
चत्तारि य गिहिलिंगे, अण्णलिंगे दसेव य।। सलिंगेण अट्ठसयं, समएणेगेण सिज्झइ॥५३॥
कठिन शब्दार्थ - गिहिलिंगे - गृहस्थलिंग में, अण्णलिंगे - अन्य लिंग में, सलिंगेणस्वलिंग से।
भावार्थ - गृहस्थ-लिंग में चार, अन्यलिंग में दस और स्वलिंग से एक सौ आठ एक समय में सिद्ध हो सकते हैं।
उक्कोस्सोगाहणाए य, सिझंते जुगवं दुवे। चत्तारि जहण्णाए, जवमज्झट्टत्तरं सयं॥५४॥
कठिन शब्दार्थ - सिझंते - सिद्ध हो सकते हैं, जुगवं - एक साथ, दुवे - दो, जहण्णाए - जघन्य से, जवमझ - जवमध्य - मध्यम अवगाहना में, अट्ठत्तरं सयं - एक सौ आठ। . भावार्थ - उत्कृष्ट अवगाहना से दो, जघन्य अवगाहना से चार और जवमध्य (मध्यम) अवगाहना में एक सौ आठ युगपत् - एक समय में एक साथ सिद्ध हो सकते हैं।
चउरुहलोए य दुवे समुद्दे, तओ जले वीसमहे तहेव य। सयं च अटुत्तरं तिरिय लोए, समएणेगेण सिज्झइ ध्रुवं ॥५५॥ . .
कठिन शब्दार्थ - चउरुडलोए - ऊर्ध्वलोक में चार, जले - जलाशयों में, वीसं - बीस, अहे - अधोलोक में, तिरिय लोए - तिर्यग्लोक में। - भावार्थ - ऊर्ध्वलोक में (मेरु चूलिका आदि पर). चार, समुद्र से दो, नदी जलाशय आदि के जल में तीन, अधोलोक में बीस और तिर्यग्लोक में एक सौ आठ एक समय में निश्चय ही सिद्ध हो सकते हैं।
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