Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - छतीसवाँ अध्ययन ccccccOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOdianROOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO
पणयालसयसहस्सा, जोयणाणं तु आयया। तावइयं चेव वित्थिण्णा, तिगुणो साहिय परिरओ॥५६॥
कठिन शब्दार्थ - पणयालसयसहस्सा - पैंतालीस लाख, जोयणाणं - योजन, आययालम्बी, तावइयं - उतनी ही, वित्थिण्णा - विस्तीर्ण, तिगुणा - तीन गुणी, साहिय - कुछ अधिक, परिरओ - परिधि। ___ भावार्थ - वह ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी पैंतालीस लाख योजन लम्बी है और उतनी ही अर्थात् पैंतालीस लाख योजन ही विस्तीर्ण (चौड़ी) है और उसकी परिधि कुछ अधिक तीन गुणी है अर्थात् एक करोड़ बयालीस लाख तीस हजार दो सौ उनपचास (१४२३०२४६) योजन की परिधि है। जैसा कि कहा है
एगा जोयण कोडी, बायालीसं भवे सयसहस्सा। तीसा चेव सहस्सा, दो चेव सया अउणपन्ना॥१॥ थोकड़े वाले प्रश्न करते हैं कि 'चार पेंताला और चार लक्खा कौन से हैं?'
उत्तर - इस लोक में चार वस्तुएं पैंतालीस लाख योजन लम्बी और ४५ लाख योजन चौड़ी हैं। यथा - १. पहली नरक का पहला पाथरा (प्रस्तट) सीमन्तक नाम वाला। २. समय क्षेत्र (मनुष्य लोक, ढाई द्वीप, दो समुद्र) ३. पहले सुधर्म देवलोक का उडु विमान ४. ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी (सिद्ध शिला)। इस लोक में एक लाख लम्बा और एक लाख ही चौड़ा ऐसे चार पदार्थ हैं यथा - १. सातवीं नरक का अप्रतिष्ठान नामक नरकावास २. जम्बूद्वीप ३. पहले सुधर्मनामक देवलोक का पालक यान विमान ४. सर्वार्थसिद्ध देवलोक।
अट्ठजोयण-बाहल्ला, सा मज्झम्मि वियाहिया। परिहायंती चरिमंते, मच्छिपत्ताउ तणुयरी॥६०॥
कठिन शब्दार्थ - अट्ठजोयण - आठ योजन, बाहल्ला - स्थूल (मोटी), मज्झम्मि - मध्य में, परिहायंती - चारों ओर से कम होती हुई, चरिमंते - चरमान्त में, मच्छिपत्ताउ - मक्खी की पांख से भी, तणुयरी - पतली (तनुतरी)।
भावार्थ - वह सिद्धशिला मध्य में आठ योजन मोटी कही गई है और चारों ओर से कम होती हुई अन्त में मक्खी के पंख से भी तनुतरी-पतली हो गई है।
अजुणसुवण्णगमई, सा पुढवी णिम्मला सहावेणं। उत्ताणगच्छत्तयसंठिया य, भणिया जिणवरेहिं॥६१॥
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