Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीव विभक्ति - रूपी अजीव का निरूपण
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भावार्थ - वे स्कन्ध और परमाणु सन्तति (प्रवाह) की अपेक्षा अनादि और अपर्यवसित (अनन्त) हैं और स्थिति की प्रतीत्य - अपेक्षा सादि - आदि सहित और सपर्यवसित (सान्तअनन्त सहित) हैं।
असंखकालमुक्कोसं, इक्कं समयं जहण्णयं। अजीवाण य रूवीणं, ठिई एसा वियाहिया॥१४॥
कठिन शब्दार्थ - असंखकालं - असंख्यातकाल, उक्कोसं - उत्कृष्ट, इक्कं समयं - एक समय।
भावार्थ - रूपी अजीवों की जघन्य स्थिति एक समय और उत्कृष्ट असंख्यात काल है यह स्थिति कही गई है।
अणंतकालमुक्कोसं, इक्कं समयं जहण्णयं। अजीवाण य रूवीणं, अंतरेयं वियाहियं ॥१५॥ कठिन शब्दार्थ - अणंतकालं - अनन्तकाल, अंतरेयं - अंतर।
भावार्थ - रूपी अजीवों का जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अनन्त काल कहा गया है।
वण्णओ गंधओ चेव, रसओ फासओ तहा। संठाणओ य विण्णेओ, परिणामो तेसिं पंचहा ॥१६॥
कठिन शब्दार्थ - वण्णओ - वर्ण से, गंधओ - गंध से, रसओ - रस से, फासओस्पर्श से, संठाणओ - संस्थान से, विण्णेओ - जानना चाहिये, परिणामो - परिणाम, तेसिं- उनका, पंचहा - पांच प्रकार का। .. भावार्थ - वर्ण से, गन्ध से, रस से, स्पर्श से और संस्थान की अपेक्षा से उन रूपी अजीव द्रव्यों के पांच प्रकार का परिणाम जानना चाहिए॥१६॥
वण्णओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया। किण्हा णीला य लोहिया, हालिद्दा सुक्किला तहा॥१७॥
कठिन शब्दार्थ - परिणया - परिणत, पकित्तिया - कहे गये हैं, किण्हा - कृष्ण, णीला - नीला, लोहिया - लोहित, हालिद्दा - हरिद्रा, सुक्किला - शुक्ल। ... भावार्थ - वर्ण से परिणत हुए, जो रूपी अजीव हैं वे पांच प्रकार के कहे गये हैं कृष्णकाला, नीला, लोहित - लाल, हरिद्रा - पीला और शुक्ल - श्वेत।
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