Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - चौतीसवाँ अध्ययन
कठिन शब्दार्थ - दसवास सहस्साइं - दस हजार वर्षों की, पलिओवम असंखभागंपल्योपम का असंख्यातवां भाग ।
भावार्थ - कापोत- लेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट तीन सागरोपम और पल्योपम का असंख्यातवां भाग अधिक होती है।
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तिण्णुदही पलिओम, असंखभागो जहण्णेण णीलठिई ।
दस उदही पलिओवम, असंखभागं च उक्कोसा ॥४२॥
कठिन शब्दार्थ - दस उदही दस सागरोपम, पलिओवम असंखभागो - पल्योपम का असंख्यातवां भाग ।
भावार्थ- नील- लेश्या की स्थिति जघन्य तीन सागरोपम और पल्योपम का असंख्यातवां भाग अधिक और उत्कृष्ट दस सागरोपम और पल्योपम का असंख्यातवां भाग अधिक होती है। दस - उदही - पलिओवम, असंखभागं जहण्णिया हो ।
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तेत्तीस -सागराई, उक्कोसा होइ किण्हाए ॥ ४३ ॥
भावार्थ - कृष्ण - लेश्या की जघन्य स्थिति, दस सागरोपम और पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग अधिक होती है और उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की होती है।
एसा रइयाणं, लेसाण ठिई उ वण्णिया होइ।
तेण परं वच्छामि, तिरिय - मणुस्साण देवाणं ॥ ४४ ॥
कठिन शब्दार्थ - तिरिय मणुस्साण देवाणं - तियंच, मनुष्य और देवों की ।
भावार्थ - यह नैरयिक जीवों की लेश्याओं की स्थिति वर्णन की गई है। इसके आगे तिर्यच, मनुष्य और देवों की लेश्याओं को स्थिति का वर्णन करूँगा ।
अंतोमुहुत्तमद्धं, लेसाण ठिई जहिं जहिं जा उ ।
तिरियाण णराणं वा, वजित्ता केवलं लेसं ॥ ४५ ॥
कठिन शब्दार्थ - अंतोमुहुत्तमद्धं - अंतर्मुहूर्त काल की, जहिं जहिं जहां जहां,
केवलं लेसं - केवली की लेश्या को, वज्जित्ता छोड़ कर ।
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भावार्थ - केवली की शुक्ल लेश्या को छोड़ कर तिर्यंच और मनुष्यों में जहाँ जहाँ जोजो लेश्या हैं उन लेश्याओं की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त है।
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मुहत्तद्धं तु जहण्णा, उक्कोसा होइ पुव्वकोडी उ णवहिं वरिसेहिं ऊणा, णायव्वा सुक्कलेसाए ॥ ४६ ॥
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