Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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२०४. . उत्तराध्ययन सूत्र - उनतीसवाँ अध्ययन . . CONOMOOOOOOOOOOOOOOOOORomancemenOOOOOOOOOOOOOOOcomom
सव्वगुणसंपण्णयाए णं अपुणरावत्तिं जणयइ, अपुणरावत्तिं पत्तए णं जीवे सारीरमाणसाणं दक्खाणं णो भागी भवइ॥४४॥ .. .. कठिन शब्दार्थ - सव्वगुणसंपण्णयाए - सर्व गुण सम्पन्नता से, अपुणरावत्तिं - अपुनरावृत्ति - पुनः संसार में आगमन के अभाव-मोक्ष को, सारीरमाणसाणं दुक्खाणं - शारीरिक और मानसिक दुःखों का भागी। ____ भावार्थ - उत्तर - ज्ञानादि सभी गुणों से सम्पन्न होने से जीव अपुनरागमन (जन्म-मरण. रूप संसार में फिर नहीं आने रूप) लाभ प्राप्त करता है। अपुनरागमन को प्राप्त हुआ जीव शारीरिक और मानसिक दुःखों का भागी नहीं होता है। .. ......
विवेचन - आत्मा को परिपूर्णता के शिखर पर पहुंचाने वाले गुणों से परिपूर्ण होना सर्वगुण सम्पन्नता है। आत्मा के ये निजी गुणं हैं - १. निरावरण पूर्ण ज्ञान २. पूर्ण दर्शन (क्षायिक सम्यक्त्व) एवं ३. सर्व संवर रूप पूर्ण चारित्र (यथाख्यात चारित्र)। सर्वगुण सम्पन्नता से जीव शारीरिक और मानसिक दुःखों से मुक्त होकर अव्याबाध सुखों के स्थान - मोक्ष को प्राप्त करता है। इसीलिये प्रस्तुत सूत्र में कहा है कि सर्वगुणसंपन्नता से अपुनरावृत्ति अर्थात् मुक्ति । प्राप्त होती है। .
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४५ वीतरायता ...वीयरागयाए णं भंते! जीवे किं जणयइ?
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! वीतरागता से जीव को क्या लाभ होता है?
वीयरागयाए णं णे हाणुबंधणाणि तण्हाणुबंधणाणि य वोच्छिंदइ मणुण्णामणुण्णेसु सद्दफरिसरसरूवगंधेसु चेव विरज्जइ॥४५॥
कठिन शब्दार्थ - वीयरागयाए णं - वीतरागता से, णेहाणुबंधणाणि - स्नेहानुबन्धनों, तण्हाणुबंधणाणिं - तृष्णानुबन्धनों का, मणुण्णामणुण्णेसु - मनोज्ञ और अमनोज्ञ, सहफरिसरसरूवगंधेसु- शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध से, विरजइ - विरक्त हो जाता है।
भावार्थ - उत्तर - वीतरागता से स्त्री-पुत्र सगे-सम्बन्धी आदि का स्नेह और धन-धान्य आदि की तृष्णा का विनाश हो जाता है और मनोज्ञ और अमनोज्ञ (प्रिय और अप्रिय) शब्दस्पर्श-रस-रूप और गन्ध इन विषयों से विरक्त हो जाता है।
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