Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र.- तीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 कालो - काल, चरमाणो - विचरते हुए, खलु - अवश्य, कालोमाणं - काल संबंधी अवमौदर्य, मुणेयव्वं - जानना चाहिये।
भावार्थ - दिन के चार पहरों में जितने समय का अभिग्रह हो अर्थात् 'आज में अमुक पहर में ही गोचरी जाऊंगा' इस प्रकार अभिग्रह करके विचरते हुए साधु के निश्चय ही काल की अपेक्षा ऊनोदरी तप होता है, ऐसा जानना चाहिए।
अहवा तइयाए पोरिसीए, ऊणाइ घासमेसंतो। चउभागूणाए वा, एवं कालेण उ भवे॥२१॥
कठिन शब्दार्थ - ऊणाइ - कुछ कम, घासमेसंतो - भिक्षा की गवेषणा करना, चउभागूणाए - चौथे भाग कम में।
भावार्थ - अथवा तीसरे पहर में कुछ कम काल तक अथवा चतुर्थ भाग कम में अर्थात् तीसरे पहर के अंतिम चौथे भाग में ही साधु आहार की गवेषणा करने का अभिग्रह करे तो इस प्रकार उसके काल की अपेक्षा ऊनोदरी तप होता है।
इत्थी वा पुरिसो वा अलंकिओ वा णालंकिओ वावि। अण्णयरवयत्थो वा, अण्णयरेणं व वत्थेणं॥२२॥ , अण्णेण विसेसेणं, वण्णेणं भावमणुमुयंते उ। एवं चरमाणो खलु, भावोमाणं मुणेयव्वं ॥२३॥
कठिन शब्दार्थ - इत्थी - स्त्री, पुरिसो - पुरुष, अलंकिओ - अलंकृत, णालंकिओअनलंकृत, अण्णयरवयत्थो - अन्यतरवयःस्थ-अमुकवय वाला, अण्णयरेणं वत्थेणं - अमुक वस्त्र वाले, विसेसेणं - विशेष प्रकार के, भावं - भावों को, अणुमुयंते - नहीं छोड़ता हुआ, चरमाणो - चर्या करते हुए, भावोमाणं - भाव से ऊनोदरी।
भावार्थ - स्त्री अथवा पुरुष, अलंकृत अथवा अलंकार-रहित, अन्यतरवयःस्थ-अमुक अवस्था वाला (बालक, युवा अथवा वृद्ध) अथवा अमुक प्रकार के वस्त्र से युक्त अथवा अन्य किसी विशेषता से युक्त (रोता हुआ या हंसता हुआ, कोपयुक्त या हर्ष युक्त) अथवा किसी विशेष वर्ण युक्त अथवा विशिष्ट भावों से युक्त दाता के हाथ से भिक्षा मिलेगी तो ही मैं भिक्षा
लूँगा। इस प्रकार अभिग्रह करके विचरने वाले साधु के निश्चय ही भाव ऊनोदरी तप होता है। ऐसा जानना चाहिए।
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