Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - तीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
वाडेसु व रत्थासु व, घरेसु वा एवमित्तियं खेत्तं । कप्पइ उ एवमाई, एवं खेत्तेण उ भवे॥१८॥
कठिन शब्दार्थ - गामे - ग्राम (जहाँ राज्य की ओर से अठारह प्रकार का कर लिया जाता हो तथा जो छोटी बस्ती हो उसे 'ग्राम' कहते हैं), णगरे - नगर (जहाँ गाय-बैल आदि का कर न लिया जाता हो ऐसी बड़ी आबादी को 'नगर' 'न कर' कहते हैं), रायहाणी - राजधानी (जहाँ राजा स्वयं रहता हो), णिगमे - निगम (जहाँ अधिकतर व्यापार करने वाले महाजनों की बस्ती हो), आगरे - आकर (सोना चाँदी आदि धातुओं की खान), पल्ली - पल्ली (चारों ओर वृक्षों से घिरा हुआ स्थान जहाँ चोरादि रहते हों), खेडे - खेड़. (जिस आबादी के चारों ओर मिट्टी का परकोटा हो), कब्बड - कर्बट (छोटी आबादी वाला गाँव जहाँ व्यापार धन्धा न चलता हो), दोणमुह - द्रोणमुख (समुद्र के किनारे की आबादी, जहाँ जाने के लिए जल व स्थल दोनों प्रकार के मार्ग हों), पट्टण - पत्तन (व्यापार वाणिज्य का बड़ा स्थान, जहाँ चारों दिशाओं से व्यापारी आते जाते हों), मडंब - मडम्ब (जिसके चारों दिशाओं में अढ़ाई-अढ़ाई कोस तक कोई ग्रामादि न हो), संवाहे - संबाध (जो ग्राम पर्वतों के बीच बसा हो, जहाँ चारों वर्ण वाले लोग रहते हों) , आसमपए - आश्रमपद (तपस्वियों के रहने का आश्रम), विहारे - विहार (भिक्षुओं के रहने का स्थान), सण्णिवेसे - सन्निवेश (जहाँ यात्रा के लिए लोग इकट्ठे होते हों), समाय - समाज (जहाँ यात्री ठहरते हों), घोसे - घोष (जहाँ ग्वालिए रहते हों-गोकुल), थलिसेणाखंधारे- स्थलसेनास्कंधावार (ऊंचे स्थान पर सेना के पड़ाव करने का स्थान), सत्थे - सार्थ (किरियाणा लेकर जाते-आते लोगों के एकत्रित होने का स्थान), संवट्ट - संवर्त (भय से डरे हुए लोग जहाँ आकर शरण लेते हों), कोट्टे - कोट वाला नगर, वाडेसु - वाट (जिसके चारों ओर बाड़ लगी हुई हो ऐसा ग्राम), रत्थासु - रथ्या (गली-मोहल्ला), घरेसु - घर, एवमित्तियं - इतने ही, खेत्तं - क्षेत्रों में, कप्पइ - कल्पता है, खेत्तेण - क्षेत्र से।
भावार्थ - क्षेत्र की अपेक्षा ऊनोदरी तप के भेद बतलाये जाते हैं। अतः पहले क्षेत्रों के नाम बतलाये जाते हैं - ग्राम, नगर, राजधानी, निगम, आकर, पल्ली, खेड़, कर्बट, द्रोणमुख, पत्तन, मडम्ब, संबाध, आश्रमपद, विहार, सनिवेश, समाज, घोष, स्थलसेनास्कन्धावार, सार्थ, संवर्त्त, कोट वाला नगर, वाट, रथ्या और घर, इन उपरोक्त क्षेत्रों में से आज मुझे इतने ही क्षेत्रों में गोचरी लेना कल्पता है अर्थात् आज मैं इतने ही क्षेत्रों में गोचरी लूँगा, इस प्रकार
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