Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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चरणविधि - तेईसवां-चौबीसवां बोल
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इक्कीसवां-बाईसवां बोल एगवीसाए सबले, बावीसाए परीसहे। जे भिक्खू जयइ णिच्चं, से ण अच्छइ मंडले॥१५॥
कठिन शब्दार्थ - एगवीसाए - इक्कीस प्रकार के, सबले - शबल दोषों में, बावीसाएबावीस प्रकार के, परीसहे - परीषहों में।
भावार्थ - इक्कीस शबल दोषों और बाईस परीषहों में जो साधु सदैव उपयोग रखता (दोषों का त्याग करता) है और परीषहों को समभावपूर्वक सहन करता है वह संसार में परिभ्रमण नहीं करता है।
विवेचन - जिस कार्य के करने से या जिस क्रिया विशेष से चारित्र में धब्बा लगता हो अथवा चारित्र मलीन होता हो उसे 'शबल दोष' कहते हैं। दशाश्रुतस्कंध दशा २ एवं समवायांग समवाय २१ में इक्कीस शबल दोषों का वर्णन है। उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २ में बावीस परीषहों का वर्णन किया जा चुका है।
- तेईसवां-चौबीसवां बोल तेवीसाए सूयगडे, रूवाहिएसु सुरेसु य।
जे भिक्खू जयइ णिच्चं, से ण अच्छइ मंडले॥१६॥ -- कठिन शब्दार्थ - तेवीसाए सूयगडे - सूत्रकृतांग सूत्र के २३ अध्ययनों में, रूवाहिएसुरूपाधिक, सुरेसु - देवों में।
भावार्थ - सूयगडांग सूत्र के तेईस अध्ययनों में और रूपाधिक अर्थात् २४ प्रकार के देवों में जो साधु सदा उपयोग रखता है, वह मण्डल (संसार) में परिभ्रमण नहीं करता है। ___विवेचन - इस गाथा में 'रूवाहिएसु' शब्द दिया है। यहाँ पर 'रूप' शब्द का अर्थ शरीर के गौर वर्ण आदि से नहीं लिया गया है किन्तु यहाँ 'रूप' शब्द संख्यावाची है। अर्थात् 'रूप' का अर्थ है एक। इस गाथा में सूयगडाङ्ग सूत्र के २३ अध्ययन कहे गये हैं। तेईस में एक
और मिलाने पर चौबीस होते हैं इसलिए रूवाहिएसु सुरेसु' का अर्थ होता है चौबीस प्रकार के देव। चौबीस प्रकार के देव कौन से हैं? समाधान दिया जाता है कि - दस भवनपति, आठ वाणव्यंतर, पांच ज्योतिषी और एक वैमानिक जाति के देव। इस प्रकार इस गाथा में २४ प्रकार के देवों का कथन किया गया है।
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