Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रमादस्थान - दुःख का मूल
२६५ commmmmmmmmmmOOOOOOOOOmminenmmmmomeoncommonommam विहार करता है तो आचारांग सूत्र के पहले श्रुतस्कन्ध के ५ वें अध्ययन के पहले उद्देशक में - अवगुण वाला बतलाया है।
१. बहुकोहे - बहुत क्रोधी २. बहुमाणे - बहुत मानी ३. बहुमाए - बहुत मायी (कपटी) ४. बहुलोभे - बहुत लोभी ५. बहुरए - पाप कर्म में बहुत रत रहने वाला अथवा बहुत पाप रूपी रज वाला ६. बहुणडे - जगत् को ठगने के लिए नट की तरह अनेक रूप धारण करने वाला ७. बहुसढे - बहुत शठ अर्थात् अत्यन्त धूर्त ८. बहुसंकप्पे - बहुत संकल्प-विकल्प करने वाला।
इस प्रकार हिंसादि आस्रवों में आसक्त और भारी कर्मा जीव एकलविहारी बन जाता है। . इसके लिए हिन्दी कवि ने ऐसा कहा है -
चार कषायी लोलुपी ज्ञान नहीं गर्विष्ठ। आप छन्दी गुरु द्रोही, आठों अवगुण अनिष्ट॥
इसलिए किसी संत को एकल विहारी नहीं होना चाहिए। अकेला विचरने वाला साधु अपनी इच्छानुसार चाहे जितनी तपश्चर्या कर ले वह सब अज्ञान तप है। एकलविहारी साधु भगवान् की आज्ञा का आराधक नहीं, किन्तु विराधक है।
दुःख का मूल जहा य अंडप्पभवा बलागा, अंडं बलागप्पभवं जहा या एमेव मोहाययणं खु तण्हा, मोहं च तण्हाययणं वयंति ॥६॥
कठिन शब्दार्थ. - जहा य - जिस प्रकार, अंडप्पभवा - अण्डे से उत्पन्न होती है, बलागा - बलाका-बगुली, अंडं - अण्डा, बलागप्पभवं - बलाका से उत्पन्न होता है, एमेव - इसी प्रकार, मोहाययणं - मोह का आयतन, तण्हा - तृष्णा, तण्हाययणं - तृष्णा का आयतन-जन्मस्थान।
भावार्थ - जिस प्रकार बगुला पक्षी अण्डे से उत्पन्न होता है और जिस प्रकार अण्डा बलाका (बगुला पक्षिणी) से उत्पन्न होता है इसी प्रकार निश्चय ही तृष्णा मोह का आयतन स्थान है और मोह तृष्णा का आयतन स्थान है (तृष्णा से मोह उत्पन्न होता है)। मोह और तृष्णा का पारस्परिक हेतु-हेतु-मद्भाव सम्बन्ध है, ऐसा ज्ञानी पुरुष फरमाते हैं।
विवेचन - जन्म मरण का कारण मोह है। मोह की उत्पत्ति तृष्णा से होती है और तृष्णा की उत्पत्ति मोह से, दोनों का परस्पर कार्य-कारण-भाव संबंध है।
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