Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - तेतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
३. झूठ बोलने वाला।
४. झूठे तोल, झूठे माप वाला। अर्थात् खरीदने के लिए बड़े और बेचने के लिए छोटे तोल और माप रखने वाला जीव तिर्यंच गतियोग्य कर्म बान्धता है।
मनुष्य आयु बन्ध के चार कारण - १. भद्र प्रकृति वाला। २. स्वभाव से विनीत। ३. दया और अनुकम्पा के परिणामों वाला। ४. मत्सर अर्थात् ईर्ष्या - डाह न करने वाला जीव मनुष्य आयु योग्य कर्म बांधता है। देव आयु बन्ध के चार कारण - १. सराग संयम वाला। २. देश विरति श्रावक। .
३. अकाम निर्जरा अर्थात् अनिच्छापूर्वक पराधीनता आदि कारणों से कर्मों की निर्जरा . करने वाला।
४. बालभाव से, विवेक के बिना, अज्ञान पूर्वक काया-क्लेश आदि तप करने वाला जीव देवायु के योग्य कर्म बांधता है।
नामकर्म की उत्तर प्रकृतियां णामकम्मं तु दुविहं, सुहमसुहंच आहियं। सुहस्स उ बहूभेया, एमेव असुहस्स वि॥१३॥ ..
कठिन शब्दार्थ - सुहं - शुभ, असुहं - अशुभ, सुहस्स - शुभ नाम कर्म के, असुहस्स - अशुभ नामकर्म के।
भावार्थ - नाम-कर्म शुभ और अशुभ के भेद से दो प्रकार का कहा गया है। शुभ नामकर्म के बहुत-से भेद हैं और इसी प्रकार अशुभ नाम-कर्म के भी बहुत-से भेद हैं।
गोत्रकर्म की उत्तर प्रकृतियां - गोयं कम्मं दुविहं, उच्चं णीयं च आहियं।
उच्चं अट्ठविहं होइ, एवं णीयं पि आहियं ॥१४॥
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