Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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कर्मप्रकृति - मोहनीय की उत्तर प्रकृतियाँ
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चक्खुमचक्खु-ओहिस्स, दंसणे केवले य आवरणे। एवं तु णव-विगप्पं, णायव्वं दंसणावरणं॥६॥
कठिन शब्दार्थ - णिद्दा - निद्रा, तहेव - और, पयला - प्रचला, पयलपयला - प्रचला प्रचला, थीणगिद्धी - स्त्यानगृद्धि, पंचमा - पांचवीं, चक्खु - चक्षुदर्शनावरणीय, अचक्खु - अचक्षुदर्शनावरणीय, ओहिस्स - अवधिज्ञानावरणीय, केवले दंसणे आवरणे - केवलदर्शनावरणीय, णव-विगप्पं - नौ प्रकार का, णायव्वं - जानना चाहिये।
भावार्थ - निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला और इसके बाद पांचवीं स्त्यानगृद्धि हैं। ये पांच निद्राएँ जाननी चाहिए। चक्षुदर्शनावरणीय, अचक्षुदर्शनावरणीय, अवधिदर्शनावरणीय और केवलदर्शनावरणीय, ये चार और उपरोक्त पांच निद्राएं इस प्रकार दर्शनावरणीय नौ प्रकार का जानना चाहिए।
वेदनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियां वेयणीयं पि य दुविहं, सायमसायं च आहियं। सायस्स उ बहू भेया, एमेव असायस्स वि॥७॥
कठिन शब्दार्थ - वेयणीयं - वेदनीय, दुविहं - दो प्रकार का, सायं - साता, असायं - असाता, आहियं - कहा गया है, सायस्स - साता वेदनीय के, बहू भेया - बहुत भेद, एमेव - इसी प्रकार, असायस्स वि - असाता वेदनीय के।
भावार्थ - वेदनीय कर्म साता और असाता रूप से दो प्रकार का कहा गया है। साता वेदनीय के बहुत भेद हैं और इसी प्रकार असातावेदनीय के भी बहुत भेद हैं।
मोहनीय की उत्तर प्रकृतियां मोहणिजं पि दुविहं, दंसणे चरणे तहा। दंसणे तिविहं वृत्तं, चरणे दुविहं भवे॥॥
कठिन शब्दार्थ - दंसणे - दर्शन मोहनीय, चरणे - चारित्र मोहनीय, दुविहं - दो प्रकार का, तिविहं - तीन प्रकार का, वुत्तं - कहा गया है।
- भावार्थ - मोहनीय कर्म भी दो प्रकार का है - दर्शन मोहनीय तथा चारित्र मोहनीय, दर्शनमोहनीय तीन प्रकार का कहा गया है और चारित्र-मोहनीय दो प्रकार का होता है।
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