Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
उत्तराध्ययन सूत्र - बत्तीसवाँ अध्ययन
भावार्थ - जिस प्रकार प्रचुर ईन्धन - बहुत ईन्धन वाले वन में लगी हुई वायु- सहित दावाग्नि ( दावानल जंगल में लगी हुई अग्नि ) उपशम- शान्त नहीं होती है इसी प्रकार प्रकामभोजी ( विविध प्रकार के रसयुक्त पदार्थों को खूब भोगने वाले) किसी भी ब्रह्मचारी की इन्द्रिय रूप अग्नि शान्त नहीं होती और वह उसके लिए हितकारी भी नहीं होती है।
विवित्तसेज्जासण जंतियाणं, ओमासणाणं दमिइंदियाणं । ण रागसत्तू धरिसेइ चित्तं, पराइओ वाहिरिवोसहेहिं ॥१२॥
कठिन शब्दार्थ - विवित्तसेज्जासण - विविक्त शय्या और आसन से, जंतियाणं यंत्रित ( नियमबद्ध), ओमासणाणं - अल्पाहारी - ऊनोदरी तप करने वाले, दमिइंदियाणं दमित इन्द्रिय, रागसत्तू - रागरूपी शत्रु, ण धरिसेइ - पराभूत नहीं कर पाते, चित्तं - चित्त को, पराइओ - पराजित, वाहिरिव - व्याधि इव - व्याधि के समान, ओसहेहिं - औषधियों से ।
भावार्थ - औषधियों से पराजित दबाई हुई व्याधि के समान (जिस प्रकार उत्तम औषधियों से पराजित की हुई व्याधि फिर आक्रमण नहीं करती उसी प्रकार ), स्त्री- पशु - नपुंसक रहित एकान्त शय्या आसनादि का यन्त्रित अर्थात् सेवन करने वाले, अवम अशन कम आहार करने वाले, दमित इन्द्रिय- इन्द्रियों का दमन करने वाले पुरुषों के चित्त को राग रूपी शत्रु दबा नहीं सकता है।
२६८
जहा विराला सहस्स मूले, ण मूसगाणं वसही पसत्था ।
एमेव इत्थीणिलयस्स मज्झे, ण बंभयारिस्स खमो णिवासो ॥ १३ ॥
कठिन शब्दार्थ - विरालावसहस्स बिल्ली के निवास स्थान के, मूले - मूल-निकट, मूसगाणं - चूहों की, वसही आवास, ण पसत्था स्त्री के मकान के, मज्झे मध्य, ण खमो
प्रशस्त नहीं है, इत्थीणिलयस्स
क्षम्य (उचित) नहीं है, णिवासो - निवास ।
-
-
Jain Education International
-
-
-
-
भावार्थ जिस प्रकार बिल्ली के रहने के स्थान के निकट मूषक - चूहों का वसति रहना प्रशस्त नहीं है। इसी प्रकार स्त्रियों के स्थान के मध्य में ब्रह्मचारी पुरुष का निवास-रहना ठीक नहीं हैं, क्योंकि वहाँ रहने से उसके ब्रह्मचर्य में हानि पहुँचने की सम्भावना रहती है।
For Personal & Private Use Only
-
विवेचन - जहाँ बिल्ली रहती हो वहाँ चूहों का रहना ठीक नहीं है क्योंकि चाहे कितनी ही सावधानी रखें किन्तु किसी न किसी समय उनके मारे जाने का भय रहता ही है। इसी प्रकार स्त्री, पशु और नपुंसक युक्त मकान में ब्रह्मचारी का रहना उचित नहीं क्योंकि वह कितनी ही
·
www.jainelibrary.org