Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पा
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उत्तराध्ययन सूत्र - तीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 अनुसार जो यथा कथञ्चित तप किया जाता है वह प्रकीर्णक तप कहा जाता है। श्रेणि तप आदि की रचना के बिना उपवास आदि तप यवमध्यचन्द्रप्रतिमा तथा वज्रमध्यचन्द्र प्रतिमा आदि तप ये सब प्रकीर्णक तप हैं। इस प्रकार अनशन विशेष रूप से इत्वरिक तप से जीव मनवाञ्छित मोक्ष रूपी फल को प्राप्त कर लेता है।
जा सा अणसणा मरणे, दुविहा सा वियाहिया। सवियारमवियारा, कायचिटुं पई भवे॥१२॥
कठिन शब्दार्थ - सवियारं - सविचार, अवियारा - अविचार, कायचिटुं पई - कायचेष्टा की अपेक्षा।
भावार्थ - वह जो मरणकालिक अनशन है, वह दो प्रकार का कहा गया है। सविचार (कायचेष्टा सहित) और अविचार (कायचेष्टा रहित), ये भेद कायचेष्टा की अपेक्षा होते हैं।
अहवा सपरिकम्मा, अपरिकम्मा य आहिया। णीहारिमणीहारी, आहारच्छेओ दोसु वि॥१३॥
कठिन शब्दार्थ - सपरिकम्मा - सपरिकर्म, अपरिकम्मा - अपरिकर्म, आहिया - .कहे गये हैं, णीहारिं - नीहारी, अणीहारी - अनीहारी, आहारच्छेओ,- आहार का त्याग।
भावार्थ - अथवा इसके प्रकारान्तर से दो भेद कहे गये हैं। यथा - सपरिकर्म (स्वयं, उठना, बैठना, करवट बदलना आदि तथा दूसरों से सेवा कराना) और अपरिकर्म (स्वयं हलन चलन न करना तथा दूसरों से सेवा न कराना) अथवा नीहारी और अनीहारी दोनों प्रकार के अनशनों में आहार का त्याग होता है। . विवेचन - ग्रामादि से बाहर किसी पर्वत की गुफा आदि में किया हुआ अनशन-मरण 'अनिर्हारी' कहलाता है और ग्रामनगरादि में किया हुआ अनशन मरण 'निर्हारी' कहलाता है। अनिर्हारी अथवा अनिर्हारिम का अर्थ है साधु के मृत कलेवर को जंगल आदि में बाहर नहीं ले जाना पड़े। निर्हारी अथवा निर्दारिम का अर्थ है कि - साधु के मृत शरीर को ग्रामादि से बाहर जंगल आदि में ले जाना पड़े।
ऊनोदरी तप ओमोयरणं पंचहा, समासेण वियाहियं। दव्वओ खेत्तकालेणं, भावेणं पज्जवेहि य॥१४॥
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