Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तपोमार्ग - अनशन तप के भेद-प्रभेद
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भावार्थ - जो. यह इत्वरिक तप है वह संक्षेप से छह प्रकार का है - १. श्रेणी तप २. प्रतर तप ३. घन तप ४. वर्ग तप। तत्पश्चात् पांचवाँ वर्गवर्ग तप और छठा प्रकीर्ण तप। यह तप अनेक प्रकार के मनवांछित फल (स्वर्गापवर्गादि फल) को देने वाला है ऐसा जानना चाहिए।
विवेचन - इत्वरिक तप के छह भेद हैं -
१. श्रेणितप - यहाँ श्रेणि का अर्थ पंक्ति है। यह तप उपवास से शुरू किया जाता है। प्रथम तीर्थंकर के समय इसकी मर्यादा उत्कृष्ट १ वर्ष की है। बीच के बाईस तीर्थंकर के समय आठ महीने का तथा अन्तिम तीर्थंकर के समय उत्कृष्ट छह महीने का होता है।
२. प्रतर तप - श्रेणि को श्रेणि से गुणा करने पर अर्थात् श्रेणि का वर्ग 'प्रतर तप' होता है। जैसे कि - उपवास, बेला, तेला, चोला ये चार पदों की श्रेणि है। इसको श्रेणि तप कहते हैं। इसकी स्थापना इस प्रकार हैं - १ २ ३ ४ इस प्रकार एक उपवास से लेकर छह महीने तक के दिनों की पंक्ति बनाकर तप करना श्रेणि तप कहलाता है। यहाँ चार पदात्मक तप की स्थापना बतलाई गयी है।
४ | १ | २३ यह प्रतर तप कहलाता है।
३. घन तप - उपरोक्त सोलह को चार से गुणा करने पर ६४ पद होते हैं। इस प्रकार यह ६४ पदात्मक घन' तप कहलाता है। अर्थात् १६ पद रूप प्रतर तप को चार पद रूप श्रेणि से गुणा करने पर घन तप होता है। ।
४. वर्ग तप - ६४ पद रूप घन तप को ६४ से गुणा करने पर गुणनफल ४०६६ (चार हजार छयानवें) होता है। यह वर्ग तप है।
५. वर्ग-वर्ग तप - ४०६६ को ४०६६ से गुणा करने पर १६७७७२१६ (एक करोड़ सड़सठ लाख सतहत्तर हजार दो सौ सोलह) होते हैं। यह वर्ग-वर्ग तप है।
इस प्रकार उपवास आदि चार पदों को लेकर यह श्रेणि तप आदि इत्वरिक तप कहलाता है। यह छह महीने तक का होता है।
६. प्रकीर्णक तप - श्रेणि तप आदि की नियत रचना के बिना एवं अपनी शक्ति के
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