Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - तीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - जिस प्रकार किसी बड़े तालाब के जल आने के मार्गों को रोक देने पर, उस तालाब का पानी बाहर निकाल देने पर तथा सूर्य के ताप द्वारा क्रम से धीरे-धीरे सूख जाता है इसी प्रकार संयमी साधुओं के भी नवीन पाप-कर्मों को रोक देने पर भवकोटिसंचित् - करोड़ों भवों के सञ्चित कर्म तप के द्वारा क्षय हो जाते हैं।
विवेचन - उपरोक्त चौथी-पांचवीं-छठी गाथा में एक रूपक के द्वारा कर्मों का क्षय करने की विधि बतलाई गई है। आशय यह है कि साधक संयम से नवीन कर्मों के आगमन का निरोध और तप से पूर्व-संचित कर्मों का क्षय कर सकता है। ___ठाणाङ्ग सूत्र के दसवें ठाणे में दस प्रकार का बल बतलाया गया है - १. स्पर्शनेन्द्रिय बल २. रसनेन्द्रिय बल ३. घ्राणेन्द्रिय बल ४. चक्षुरिन्द्रिय बल ५. श्रोत्रेन्द्रिय बल ६. ज्ञान बल ७. दर्शन बल ८. चारित्र बल ६. तप बल और १०. वीर्य बल।
इनमें से तपबल का महत्त्व बताते हुए नवांगी टीकाकार श्री अभयदेव सूरि ने टीका में
लिखा हैं -
'तपोबलं यद् अनेक भवार्जितं अनेक दुःख कारणं निकाचित कर्मग्रंथिं क्षपयति'
अर्थ - तपबल से तपस्वी महापुरुष अनेक भवों में उपार्जित किये हुए और अनेक दुःखों। की कारणभूत निकाचित कर्मरूपी ग्रन्थि(गाँठ) को भी खपा देता है (क्षय कर देता है)। ध्यान आभ्यन्तर तप है, अतः ध्यान के द्वारा भी कर्म क्षय किये जाते हैं। जैसा कि - गजसुकुमालजी ने ध्यान रूपी तप के द्वारा थोड़े से समय में ही अनेक भवों के उपार्जित और निकाचित रूप में . बंधे हुए कर्मों को क्षय कर दिया। अतः कहा गया है -
कर्मों के बहु भार से, दब गया चेतन राय। ध्यान अग्नि संयोग से, क्षण एक में सिद्ध थाय॥
यही बात गाथा ६ में बताई गई है कि - करोड़ों भवों का उपार्जन किया हुआ पाप कर्म को तप के द्वारा 'खणंसि मुक्के' अल्प समय में ही क्षय कर देता है। - ग्रन्थों में बतलाया गया है कि - गजसुकुमाल के साथ सोमिल का निन्नयानवें लाख भव पहले का निकाचित बंधा हुआ कर्म था जो अब उदये में आया। गजसुकुमाल मुनि ने अचल
और अडोल ध्यान रूपी तप के बल से अल्प समय में ही क्षय कर दिया। इसमें आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं है क्योंकि यह तो लाखों भव सम्बन्धी बात है किन्तु शास्त्रकार तो फरमाते हैं कि - करोड़ों भव का पापकर्म भी तप के बल से अल्प समय में ही क्षय किया जा सकता है।
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