Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - उनतीसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
६३. चक्षुरिन्द्रयनिग्रह चक्खिंदिय-णिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ? भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! चक्षु इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या लाभ होता है?
चक्खिंदिय-णिग्गहेणं मणुण्णामणुण्णेसु रूवेसु रागदोस-णिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं च णं कम्मं ण बंधइ, पुव्वबद्धं च णिज्जरेइ॥६३॥
कठिन शब्दार्थ - चक्विंदिय-णिग्गहेणं - चक्षुइन्द्रिय के निग्रह से, रूवेसु - रूपों में।
भावार्थ - उत्तर :- चक्षु इन्द्रिय के निग्रह से मनोज्ञ और अमनोज्ञ रूपों में रागद्वेष का निग्रह होता है और चक्षुइन्द्रिय निमित्तक कर्मों का बन्ध नहीं होता है और. पहले बंधे हुए कर्मों की निर्जरा हो जाती है।
६४ प्राणेन्द्रिय-निग्रह पाणिंदिय-णिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ? भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! घ्राणेन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या लाभ होता है?
घाणिदिय-णिग्गहेणं मणुण्णामणुण्णेसु गंधेसु रागदोस-णिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं च णं कम्मं ण बंधइ, पुव्वबद्धं च णिजरेइ॥६४॥ .
कठिन शब्दार्थ - पाणिंदियणिग्गहेणं - घ्राणेन्द्रिय के निग्रह से, गंधेसु - गन्धों में। .. भावार्थ - उत्तर - घ्राणेन्द्रिय के निग्रह से मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्धों में रागद्वेष का निग्रह होता है, तन्निमित्तक-घ्राणेन्द्रिय निमित्तक कर्मों का बन्ध नहीं होता और पहले बाँधे हुए कर्मों की निर्जरा हो जाती है।
६५ जिवन्द्रिय निग्रह जिभिंदिय-णिग्गहेणं भंते! जीवे किं जणयइ? । भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! जिह्वा इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या लाभ होता है?
जिभिंदिय-णिग्गहेणं मणुण्णामणुण्णेसु रसेसु रागदोस-णिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं च णं कम्मं ण बंधइ, पुवबद्धं च णिजरेइ ॥६५॥
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