Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र
उनतीसवाँ अध्ययन
३. घ्राणेन्द्रिय के दो विषय - सुरभिगंध (सुगन्ध-शुभ गंध) और दुरभिगन्ध ( दुर्गन्ध२ सचित्त, २ अचित्त, और २ मिश्र । इन ६ पर राग
अशुभ गंध) इनके १२ विकार हैं यथा
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और ६ पर द्वेष । इस प्रकार १२ विकार हैं।
४. रसनेन्द्रिय ( जिह्वा इन्द्रिय) के पांच विषय - तीखा, कड़वा, कषैला, खट्टा और मीठा । इनके ६० विकार हैं यथा ५ सचित्त, ५ अचित्त, ५ मिश्र, ये १५ शुभ, १५ अशुभ, इन ३० पर राग और ३० पर द्वेष । इस प्रकार ६० विकार हैं।
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५. स्पर्शनेन्द्रिय के आठ विषय - कर्कश (खुरदरा ), मृदु (कोमल), लघु (हलका), गुरु (भारी), शीत ( ठण्डा), उष्ण (गर्म), रूक्ष (लूखा) और स्निग्ध ( चिकना ) । इनके ६६ विकार हैं। यथा - 5 सचित्त, ८ अचित्त, ८ मिश्र ये २४ शुभ और २४ अशुभ, इन ४८ पर राग और ४८ परं द्वेष । इस प्रकार ६६ विकार हैं।
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पांच इन्द्रियों के सामने उन-उन के विषय आवे अर्थात् शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श आने पर अर्थात् शब्द कान में पड़ने पर सुना न जाय ऐसा तो हो नहीं सकता है, किन्तु उनमें विकार भाव को प्राप्त होना अर्थात् राग द्वेष करने से कर्मों का बंध होता है। जैसा कि . आचाराङ्ग सूत्र के दूसरे श्रुतस्कन्ध के १५ वें अध्ययन में कहा है कि सक्काण सोउं सहा, सोयविसयमागया । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥१॥ ण सक्कं रूवमदहं चक्खुविसयमागयं । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥ २ ॥ जो सक्का गंधमग्घाउं, णासाविसयमागयं । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥ ३ ॥ णो सक्का रसमस्साउं, जीहाविसयमागयं । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥४॥ णो सक्का फासमवेदेउं, फासविसयमागयं । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ॥५ ॥
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अर्थ - इन गाथाओं का सारांश यह है कि पांच इन्द्रियों के सामने शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श आने पर श्रोत्रेन्द्रिय आदि इन्द्रियों द्वारा उनका ग्रहण न हो, यह तो संभव नहीं है किन्तु उसमें विकार को प्राप्त नहीं होना अर्थात् राग द्वेष नहीं करना यह मुनिजन आदि ज्ञानी पुरुषों का कर्तव्य है इससे उनको कर्म बंध नहीं होगा क्योंकि राग द्वेष करने से कर्म बंध होता है।
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