Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सम्यक्त्व पराक्रम - सम्यक्त्व पराक्रम के ७३ मूल सूत्र - मान-विजय २१९ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
'पांचों परिपूर्ण इन्द्रियों का मिलना महान् पुण्यवाणी का उदय है। इनको नष्ट भ्रष्ट कर देना उचित नहीं है। यह अज्ञानता है। इनके विषय में राग द्वेष करने रूप विकार को प्राप्त नहीं होना, यह इन्द्रिय निग्रह का वास्तविक अर्थ है और यही इनका सदुपयोग है।
६७ क्रोध-विजय कोह-विजएणं भंते! जीवे किं जणयइ?
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! क्रोध विजय - क्रोध को जीतने से जीव को किस गुण की प्राप्ति होती है? . ___ कोह-विजएणं खंतिं जणयइ, कोहवेयणिज्जं कम्मं ण बंधइ, पुव्वबद्धं च णिज्जरेइ॥६७॥ - कठिन शब्दार्थ - कोहविजएणं - क्रोध-विजय से, खंतिं - क्षमा की, कोहवेयणिज्जं . कम्मं - क्रोध वेदनीय कर्मों का। .. भावार्थ - उत्तर - क्रोध विजय - क्रोध को जीतने से जीव को क्षान्ति - 'क्षमा गुण की प्राप्ति होती है और क्षमागुण युक्त जीव, क्रोध वेदनीय (क्रोधजन्य) क्रोध करके वेदने योग्य अर्थात् भोगने योग्य कर्मों का बन्ध नहीं करता है और पहले बंधे हुए कर्मों की निर्जरा कर देता है।
६८. मान-विजय माण-विजएणं भंते! जीवे किं जणयइ?
भावार्थ - प्रश्न - हे भगवन्! मान विजय - मान को जीतने से जीव को किस गुण की प्राप्ति होती है? .
माण-विजएणं मद्दवं जणयइ, माणवेयणिजं कम्मं ण बंधइ, पुव्वबद्धं च णिज्जरेइ॥६॥ ___ कठिन शब्दार्थ - माणविजएणं - मान विजय से, मद्दवं - मार्दव-मृदुता, माणवेयणिज्जं कम्मं - मान वेदनीय कर्म का। - . भावार्थ - उत्तर - मान विजय - मान को जीतने से मार्दव-मृदुता (स्वभाव की कोमलता) गुण की प्राप्ति होती है और मृदुता गुण युक्त जीव के मान वेदनीय (भोगने योग्य) कर्मों का बंध नहीं होता है और पहले बंधे हुए मानजनित कर्मों की निर्जरा कर देता है।
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