Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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पार७॥
उत्तराध्ययन सूत्र - पच्चीसवाँ अध्ययन oooooooooooooooooooooominecomecommmmmmmmmmmmmcoom ___ कठिन शब्दार्थ - 'दिव्व माणुस्स तेरिच्छं - देव, मनुष्य और तिर्यंच संबंधी, ण सेवेइसेवन नहीं करता, मेहुणं - मैथुन का, मणसा-काय-वक्केणं - मन वचन काया से।
भावार्थ - जो मन, वचन, काया रूपी तीन योग तीन करण से देव-मनुष्य और तिर्यंच सम्बन्धी मैथुन का सेवन नहीं करता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
जहा पोमं जले जायं, णोवलिप्पइ वारिणा। एवं अलित्तं कामेहि, तं वयं बूम माहणं ॥२७॥
कठिन शब्दार्थ - पोमं - कमल, जले - जल में, जायं - उत्पन्न होकर, गोवलिप्पइलिप्त नहीं होता, वारिणा - जल से, अलित्तं - लिप्त नहीं होता, कामेहि. - कामभोगों में। ___भावार्थ - जिस प्रकार पानी में उत्पन्न होकर भी कमल पानी से लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार जो पुरुष काम-भोगों से लिप्त नहीं होता, उसे हम ब्राह्मण कहते हैं।
अलोलुयं मुहाजीविं, अणगारं अकिंचणं। असंसत्तं गिहत्थेहिं, तं वयं बूम माहणं॥२८॥
कठिन शब्दार्थ - अलोलुयं - अलोलुप, मुहाजीविं - मुधाजीवी, अकिंचणं - अकिंचन, असंसत्तं - संसर्ग (आसक्ति) रहित, गिहत्थेहिं - गृहस्थों के।
भावार्थ - जो लोलुपता रहित मुधाजीवी-निस्पृह और निःस्वार्थ भाव से अज्ञात कुल से निर्दोष भिक्षा ग्रहण कर संयम जीवन बिताने वाला अकिंचन - परिग्रह-रहित गृहस्थों के परिचय रहित अनगार है, उसको हम ब्राह्मण कहते हैं।
विवेचन - किसी भी सांसारिक लालसा के बिना साधु साध्वी के संयम पालन में सहायक बनने के लिए जो दाता गोचरी बहराता है, उसे 'मुधादायी' कहते हैं। यह दाता मुझे अच्छी अच्छी वस्तु देता है इसलिए मैं इसका कुछ उपकार करूँ' ऐसी भावना रखे बिना जो सिर्फ संयम पालन के लिए निःस्वार्थ भाव से भिक्षा लेता है, उसे 'मुधाजीवी' कहते हैं।
जिस घर में यह मालूम नहीं है कि साधु-साध्वी मेरे यहाँ आज गोचरी के लिए पधारेंगे। ऐसे कुल को 'अज्ञात कुल' कहते हैं। कहा है -
मुधादायी मुधाजीवी, दुर्लभ इण संसार। वीर कहे सुण गोयमा, दोनों होवे भव पार॥
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