Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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यज्ञीय - जयघोषमुनि का वैराग्य पूर्ण उपदेश
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विजयघोष की इस प्रार्थना के उत्तर में जयघोष मुनि ने जो कुछ कहा अब इसका निरूपण करते हैं -
जयघोषमुनि का वैराग्य पूर्ण उपदेश ण कर्ज मज्झ भिक्खेणं, खिप्पं णिक्खमसू दिया। मा भमिहिसि भयावहे, घोरे संसार-सागरे॥४०॥
कठिन शब्दार्थ - ण कज्जं - प्रयोजन नहीं है, भिक्खेणं - भिक्षा से, णिक्खमसू - अभिनिष्क्रमण कर, दिया - हे द्विज! मा भमिहिसि - भ्रमण ने करना पड़े, भयाव? - भय के आवतों वाले, घोरे - घोर, संसार सागरे - संसार सागर में। ..भावार्थ - मुनि फरमाते हैं कि - हे द्विज! मुझे भिक्षा से प्रयोजन नहीं है किन्तु मैं चाहता हूँ कि तुम शीघ्र प्रव्रज्या स्वीकार करो। ऐसा करने से तुमको भय रूप आवर्त वाले घोर संसारसागर में परिभ्रमण नहीं करना पड़ेगा।
उवलेवो होइ भोगेसु, अभोगी णोवलिप्पइ।. भोगी भमइ संसारे, अभोगी विष्पमुच्चइ॥४१॥
कठिन शब्दार्थ - उवलेवो - उपलेप, भोगेसु - भोगों में, अभोगी:- अभोगी - भोगों का सेवन न करने वाला, णोवलिप्पड़'- लिप्त नहीं होता, भमइ - भ्रमण करता है, विप्पमुच्चइमुक्त हो जाता है।
भावार्थ - भोगों को भोगने से कर्मों का बन्ध होए है और भोगों का सेवन न करने वाला कर्मों से लिप्त नहीं होता। यही कारण है कि भोगी आत्मा संसार में परिभ्रमण करती रहती है और भौगों का त्याग करने वाली आत्मा मुक्त हो जाती है। उल्लो सुक्को य दो छूढा, गोलया मट्टियामया।
जाउल्ला सोऽत्थ लग्गइ॥४२॥ - कठिन शब्दार्थ - उल्लो - गीला, सुक्को - सूखा, दो मट्टियामया- दो मिट्टी के, गोलया - गोले, छूढा - फैंके गए, आवडिया - आकर गिरे, कुडे - दीवार पर, लग्गइ : चिपक गया।
वाडया
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