Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
१३६
... उत्तराध्ययन सूत्र - सत्ताईसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
एगं डसइ पुच्छम्मि, एगं विंधइऽभिक्खणं। - एगो भंजइ समिलं, एगो उप्पहपट्टिओ॥४॥
कठिन शब्दार्थ - डसइ - दंश देता है, पुच्छम्मि - पूंछ में, विंधइ - बींधता है, अभिक्खणं - बार बार, भंजइ - तोड़ देता है, समिलं - जुए को, उप्पहपट्ठिओ - उत्पंथ प्रस्थित - उन्मार्ग पर चलता है।
भावार्थ - कोई गाड़ीवान् क्रोधित होकर ऐसे किसी एक गलियार बैल की पूँछ दांतों से काटता है तथा किसी एक बैल के बार-बार लोहे की आर चुभा कर बींध डालता है तब कोई एक गलियार बैल जुए को तोड़ देता है और कोई एक उत्पथप्रस्थित - कुमार्ग में दौड़ जाता है। इस प्रकार गलियार बैल और गाड़ीवान् दोनों दुःखी होते हैं।
एगो पडइ पासेणं, णिवेसइ णिविजइ। उक्कुद्दइ उप्फिडइ, सढे बालगविं वए॥५॥
कठिन शब्दार्थ - पडइ - पड़ जाता है, पासेणं - एक ओर, णिवेसइ - बैठ जाता है, णिविज्जइ - लेट जाता है, उक्कुद्दइ - कूदता है, उप्फिडइ - उछलता है, सढे - शठधूर्त, बालगविं - तरूण गाय के पीछे, वए - भाग जाता है। ... भावार्थ - कोई एक गलियार बैल एक पसवाड़े गिर जाता है, कोई बैठ जाता है, कोई लेट जाता है, कोई कूदने लगता है, कोई मेंढ़क के समान छलांगें मारता है और कोई दुष्ट बैल तरुण गाय को देख कर उसकी ओर दौड़ने लगता है।
माई मुद्धेण पडइ, कुद्धे गच्छइ पडिप्पहं। मयलक्खेण चिट्ठइ, वेगेण य पहावड़॥६॥
कठिन शब्दार्थ - माई - कपटी, मुद्धेण - मस्तक के बल, कुद्धे - क्रुद्ध होकर, पडिप्पहंप्रतिपथ को, मयलक्खेण - मृतलक्षण, वेगेण - वेग से, पहावइ - दौड़ने लगता है।
भावार्थ - कोई मायावी बैल माथा नीचे करके गिर पड़ता है। कोई क्रोध में आ कर प्रतिपथ-सीधा मार्ग छोड़ कर कुमार्ग में दौड़ जाता है, मृतलक्षण-कोई बैल मृत्यु होने का ढोंग करके पड़ जाता है और कोई वेग से दौड़ने लगता है।
छिण्णाले छिंदइ सेल्लिं, दुईतो भंजए जुगं। से वि य सुस्सुयाइत्ता, उजहित्ता पलायए॥७॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org