Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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__उत्तराध्ययन सूत्र - अट्ठाईसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
सबंधयार-उज्जोओ, पभा छायाऽऽतवो इ वा। वण्ण-रस-गंध-फासा, पुग्गलाणं तु लक्खणं॥१२॥.
.. कठिन शब्दार्थ - सइंधयार उज्जोओ - शब्द, अंधकार, उद्योत, पभा - प्रभा, छायाछाया, आतवो - आतप (धूप), वण्ण-रस-गंध-फासा - वर्ण, रस, गंध और स्पर्श, पुग्गलाणं- पुद्गलों के।
भावार्थ - शब्द, अन्धकार, उद्योत, प्रभा, छाया, आतप-धूप (उष्ण प्रकाश) और वर्ण, रस, गंध और स्पर्श, ये सब पुद्गलों के लक्षण हैं। इनके द्वारा पुद्गल द्रव्य पहचाना जाता है।
विवेचन - शब्द - पुद्गलों के संघात और विघात तथा जीव के प्रयत्न से होने वाले पुद्गलों के ध्वनि परिणाम को शब्द कहा गया है। शब्द को जैन दर्शन में पौद्गलिक, मूर्त और अनित्य माना है।
अंधकार और उद्योत - अंधकार को जैन दर्शन में प्रकाश का अभाव रूप न मान कर प्रकाश (उद्योत) की तरह पुद्गल का सद्रूप पर्याय माना है। वास्तव में अन्धकार पुद्गल द्रव्य है, क्योंकि उसमें गुण है। जो-जो गुणवान् होता है वह-वह द्रव्य होता है, जैसे - प्रकाश। जैसे प्रकाश का भास्वर रूप और उष्ण स्पर्श प्रसिद्ध है, वैसे ही अंधकार का कृष्ण रूप और शीत स्पर्श अनुभव सिद्ध है। निष्कर्ष यह है कि अंधकार (अशुभ) पुद्गल का कार्य-लक्षण है, इसलिए वह पौद्गलिक है। पुद्गल का एक पर्याय है। ____ छाया : स्वरूप और प्रकार - छाया भी पौद्गलिक है - पुद्गल का एक पर्याय है। प्रत्येक स्थूल पौद्गलिक पदार्थ चय-उपचय धर्म वाला है। पुद्गल रूप पदार्थ का चय-उपचय होने के साथ-साथ उसमें से तदाकार किरणें निकलती रहती है। वे ही किरणे योग्य निमित्त मिलने पर प्रतिबिम्बित होती है, उसे ही 'छाया' कहा जाता है। वह दो प्रकार की है .. तवर्णादिविकार छाया (दर्पण आदि स्वच्छ पदार्थों में ज्यों की त्यों दिखाई देने वाली आकृति)
और प्रतिबिम्ब छाया (अन्य पदार्थों पर अस्पष्ट प्रतिबिम्ब मात्र पड़ना)। अतएव छाया भाव रूप है, अभाव रूप नहीं।
एगत्तं च पुहत्तं च, संखा संठाणमेव य।। संजोगा य विभागा य, पजवाणं तु लक्खणं॥१३॥ कठिन शब्दार्थ - एगत्तं - एकत्व-एकत्रित होना, पुहत्तं - पृथक् होना, संखा -
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