Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
मोक्षमार्ग गति - सम्यक्त्व की रुचियाँ - विस्तार रुचि
१५३ SOGOOGGCONNECOLOGORGEOGOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOG0000000000000000000
भावार्थ - जो सूत्र-श्रुत पढ़ता हुआ आचारांगादि अंगप्रविष्ट अथवा उत्तराध्ययन आदि अंगबाह्य सूत्रों से सम्यक्त्व प्राप्त करता है वह 'सूत्ररुचि' है, ऐसा जानना चाहिए। अंगप्रविष्ट तथा अंगबाह्य सूत्रों को पढ़ कर जीवादि तत्त्वों पर श्रद्धा करना ‘सूत्ररुचि' है।
५ बीज रुचि एगेण अणेगाई पयाई, जो पसरइ उ सम्मत्तं। उदएव्व तेल्लबिंदू, सो बीयरुइत्ति णायव्वो॥२२॥
कठिन शब्दार्थ - एगेण - एक पद से, अणेगाइं पयाई - अनेक पदों से, पसरइ - फैल जाता है, उदएव्व तेल्लबिंदू - जल में तैल की बूंद की तरह।
___ भावार्थ - जिस प्रकार जल में पड़ी हुई तैल की बूंद फैल जाती है उसी प्रकार जिसकी सम्यक्त्व एक जीवादि पद से अनेक पदों में फैल जाती है वह 'बीचरुचि' है, ऐसा जानना चाहिए।
६ अभिगम रुचि सो होइ अभिगमरुई, सुयणाणं जेण अत्थओ दिटुं। इक्कारस अंगाई, पइण्णगं दिट्ठिवाओ य॥२३॥
कठिन शब्दार्थ - सुयणाणं - श्रुतज्ञान को, अत्थओ - अर्थ रूप से, दिटुं - देखा है या उपदेश प्राप्त किया है, इक्कारस अंगाई - ग्यारह अंग, पइण्णगं - प्रकीर्णक, दिडिवाओदृष्टिवाद। .
· भावार्थ - जिसने ग्यारह अंग, प्रकीर्णक सूत्र और दृष्टिवाद तथा उपांग सूत्रों में जो श्रुतज्ञान है, उसको अर्थ रूप से जान लिया है, वह 'अभिगम रुचि' है।
विस्तार रुचि दव्वाण सव्वभावा, सव्वपमाणेहिं जस्स उवलद्धा। सव्वाहिं णयविहीहिं च, वित्थाररुइ त्ति णायव्वो॥२४॥
कठिन शब्दार्थ - सव्वपमाणेहिं - सभी प्रमाणों से, उवलद्धा - उपलब्ध-ज्ञात हो गये हैं, णयविहीहिं - नय विधियों से।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org