Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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खलुंकीय - गर्गाचार्य का एकाकी विचरण
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. गर्गाचार्य का एकाकी विचरण मिउ-मद्दव-संपण्णो, गंभीरो सुसमाहिओ। विहरइ महिं महप्पा, सीलभूएण अप्पणा॥१७॥ त्तिबेमि॥
कठिन शब्दार्थ - मिउमद्दवसंपण्णो - मृदु और मार्दव गुण से संपन्न, गंभीरे - गम्भीर, सुसमाहिए - सम्यक् समाधि में संलग्न, महिं - पृथ्वी पर, महप्पा - महात्मा, सीलभूएण - शीलभूत, अप्पणा - आत्मा से। - भावार्थ - मृदु मार्दव संपन्न (विनय और कोमलता सरलता सहित) गम्भीर, सुसमाधिवन्त वे महात्मा गर्गाचार्य शीलभूत श्रेष्ठ आचार वाले आत्मा से युक्त हो कर पृथ्वी पर विचरने लगे। शुद्ध संयम का पालन करके और आठ कर्मों को क्षय करके मोक्ष को प्राप्त हो गये। ऐसा मैं कहता हूँ।
विवेचन - जिन कारणों से आत्मा में असमाधि उत्पन्न हो, ज्ञान, दर्शन, चारित्र की उन्नति में बाधा उपस्थित हो। धर्मध्यान, शुक्लध्यान के स्थान पर आर्तध्यान, रौद्रध्यान उत्पन्न होता हो, उन कारणों से स्वयं को पृथक् रखना मुमुक्षु आत्मा का परम कर्त्तव्य है। यही अन्तःप्रेरणा गर्गाचार्य के मन में जागी और उन्होंने शिष्यों का मोह छोड़ कर स्वतंत्र समाधि मार्ग अपना
लिया।
.. इस गाथा में आये हुए 'मिउ मद्दव संपण्णो' शब्द का अर्थ - मृदु - ब्राह्यवृत्ति से कोमल-विनम्र तथा मन से भी मृदुता से युक्त समझना चाहिए।
॥ खलुकीय नामक सत्ताईसवां अध्ययन समाप्त॥
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