Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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सामाचारी - उपसंहार
१३३ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 दो लोगस्स का कायोत्सर्ग तथा तप चिंतन रूप दो लोगस्स का कायोत्सर्ग, इस प्रकार चार लोगस्स के कायोत्सर्ग करने की व्यवस्था दी है।
पारियकाउस्सग्गो, वंदित्ताण तओ गुरुं। तवं संपडिवजित्ता, करिजा सिद्धाण संथवं ॥५२॥
कठिन शब्दार्थ - संपडिवज्जित्ता - अंगीकार करके, सिद्धाण - सिद्ध भगवंतों की, संथवं - संस्तव (स्तुति)।
भावार्थ - कायोत्सर्ग पार कर गुरु महाराज को वन्दना करे, उसके बाद तप अंगीकार करे (प्रत्याख्यान करे) फिर सिद्ध भगवान् की स्तुति करे अर्थात् 'नमोत्थुणं' का पाठ बोले।
विवेचन - इस प्रकार रात्रि प्रतिक्रमण के छह आवश्यक पूर्ण हुए। यहाँ आवश्यक की विधि का संक्षेप में वर्णन किया गया है। विशेष विस्तार आवश्यक सूत्र में है।
उपसंहार .. एसा समायारी, समासेण वियाहिया।
जं चरित्ता बहू जीवा, तिण्णा संसारसागरं ॥५३॥ तिबेमि॥
कठिन शब्दार्थ - समासेण - संक्षेप में, वियाहिया - वर्णन की गई है, चरित्ता - • आचरण करके, तिण्णा - तिर गए, संसारसागरं - संसार समुद्र को।
भावार्थ - यह. दस प्रकार की समाचारी संक्षेप से कही गई है। जिसका पालन करके बहुत-से जीव संसार-सागर से तिर गये हैं। इसी प्रकार वर्तमान काल में तिर रहे हैं और आगामी काल में भी तिरेंगे। ऐसा मैं कहता हूँ।
विवेचन - आगमकार द्वारा प्ररूपित इस सामाचारी का समयाचारी सहित आचरण करने से अनेक साधक संसार सागर को पार कर गये, वर्तमान में संख्यात जीव संसार सागर पार कर रहे हैं और भविष्य में अनेक भव्य जीव संसार सागर को पार करेंगे।
॥ सामाचारी नामक छब्बीसवाँ अध्ययन समाप्त॥
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