Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - तेईसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
केसीकुमार समणे, गोयमे य महायसे। उभओऽवि तत्थ विहरिसुं, अल्लीणा सुसमाहिया॥६॥
कठिन शब्दार्थ - उभओ वि - दोनों ही, विहरिसुं - विचरते थे, अल्लीणा - आत्मा (साधना) में लीन, सुसमाहिया - सम्यक् समाधि से युक्त।
भावार्थ - मन-वचन-काया से गुप्त, ज्ञान दर्शन-चारित्र की समाधिवंत, महायशस्वी कुमार श्रमण केशी स्वामी और गौतमस्वामी दोनों ही वहाँ सुख-शांतिपूर्वक विचरते थे।
दोनों तीर्थों के अंतर पर चिंतन उभओ सीस-संघाणं, संजयाणं तवस्सिणं। तत्थ चिंता समुप्पण्णा, गुणवंताण ताइणं॥१०॥
कठिन शब्दार्थ - संजयाणं - संयत, तवस्सिणं - तपस्वी, चिंता - चिन्ता (शंका), समुप्पण्णा - उत्पन्न हुई, गुणवंताण - गुण संपन्न, ताइणं - छह काय जीवों के रक्षक।
भावार्थ - कुमारेश्रमण केशीस्वामी और गौतमस्वामी दोनों के संयत, तपस्वी, ज्ञानदर्शन-चारित्र आदि गुण सम्पन्न छह काय जीवों के रक्षक शिष्य-समुदाय के मन में वहाँ चिन्ता, शंका उत्पन्न हुई अर्थात् गोचरी के लिए निकले हुए उन दोनों के शिष्य-समुदाय को, एक ही धर्म के उपासक होने पर भी, एक-दूसरे के वेष आदि में अन्तर दिखाई देने के कारण एक-दूसरे के प्रति शंका उत्पन्न हुई।
विवेचन - दोनों के शिष्यों के चार विशेषण दिये हैं - १. संयत २. तपस्वी ३. गुणवान् और ४. त्रायी। केरिसो वा इमो धम्मो? इमो धम्मो व केरिसो?। आयार-धम्मप्पणिही, इमा वा सा व केरिसी?॥११॥
कठिन शब्दार्थ - केरिसो - कैसा है? इमो - यह, धम्मो - धर्म, आयारधम्मप्पणिहीआचार रूप धर्म की प्रणिधि अर्थात् व्यवस्था-मर्यादा विधि।
भावार्थ - वे शिष्य इस प्रकार शंका करने लगे कि यह हमारा धर्म कैसा है और यह इनका धर्म कैसा है? तथा यह हमारी आचार धर्म की व्यवस्था अर्थात् बाह्य वेष धारणादि क्रिया कैसी है और उनकी आचार-धर्म की व्यवस्था कैसी है?
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