Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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केशि-गौतमीय - केशीश्रमण की बारहवीं जिज्ञासा 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 कहा गया है? उपरोक्त प्रकार से प्रश्न करते हुए केशीकुमार श्रमण से गौतमस्वामी इस प्रकार कहने लगे।
उग्गओ खीणसंसारो, सव्वण्णू जिणभक्खरो। सो करिस्सइ उज्जोयं, सव्वलोयम्मि पाणिणं॥७॥
कठिन शब्दार्थ - खीणसंसारो - जिसका संसार क्षीण हो चुका है, सव्वण्णू - सर्वज्ञ, जिणभक्खरो - जिन भास्कर।
भावार्थ - क्षीण हो गया है संसार जिसका अर्थात् संसार के मूलभूत कर्मों का क्षय कर देने वाला सर्वज्ञ जिनेन्द्र भगवान् रूपी भास्कर (सूर्य) उदय हुआ है वह प्राणियों के लिए सम्पूर्ण लोक में उद्योत-प्रकाश करेगा। .
विवेचन - जैसे सूर्य अंधकार को दूर करके जग को प्रकाशित करता है उसी प्रकार जगत् में फैले हुए घोर अज्ञान अन्धकार से व्याप्त प्राणियों को उदित हुआ निर्मल ज्ञान सूर्य ही ज्ञान का प्रकाश देता है। तीर्थंकर ऐसे ही निर्मल सूर्य हैं जिनका ज्ञान किसी भी वस्तु से कदापि आवृत्त नहीं होता। . इसके अतिरिक्त उक्त गाथा में प्रतीत होता है कि भगवान् वर्धमान स्वामी के समय में इस आर्य भूमि में अज्ञानता और अंधविश्वास का अधिक प्राबल्य था। बहुत से भव्य जीव अज्ञानता के अंधकारमय भयानक जंगल में भटक रहे थे। इन सब कुसंस्कारों को जिनेन्द्र भगवान् श्री . वर्धमान स्वामी ने दूर किया।
केशीश्नमण की बारहवीं जिज्ञासा साहु गोयम! पण्णा ते, छिण्णो मे संसओ इमो। अण्णोऽवि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा!॥७॥
भावार्थ - हे गौतम! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय भी दूर कर दिया है। अब मेरा एक अन्य भी संशय-प्रश्न है। हे गौतम! मुझे उसके विषय में भी कुछ कहें अर्थात् मेरी उस जिज्ञासा का भी समाधान कीजिए।
सारीरमाणसे दुक्खे, बज्झमाणाण पाणिणं। खेमं सिव-मणाबाहं, ठाणं किं मण्णसि मुणी! ॥८॥
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