Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - तेईसवाँ अध्ययन
कठिन शब्दार्थ - सारीरमाणसे दुक्खे - शारीरिक और मानसिक दुःखों से, बज्झमाणाण पाणिणं - पीड़ित ( बाधित) प्राणीगण के लिए, खेमं - क्षेमंकर, सिवं शिव रूप ( शिवंकर), अणाबाहं - निराबाध- बाधा रहित, ठाणं - स्थान को, कं- किसे, मण्णसि मानते हो ।
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भावार्थ - बारहवाँ प्रश्न हे मुने! शारीरिक और मानसिक दुःखों से बाद्धयमा पीड़ित होते हुए अथवा आकुल व्याकुल बने हुए प्राणियों के लिए क्षेम रूप, शिव रूप और “बाधा - पीड़ा रहित स्थान आप कौन-सा मानते हैं?
विवेचन - खेमं सिवं अणाबाहः क्षेमं व्याधि आदि से रहित, शिवं - जरा उपद्रव से रहित, अनाबाध - शत्रुजन का अभाव होने से स्वाभाविक रूप से पीड़ा रहितं । गौतम स्वामी का समाधान
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अत्थि एगं धुवं ठाणं, लोगग्गम्मि दुरा ।
जत्थ णत्थि जरामच्चू, वाहिणो वेयणा तहा ॥ ८१ ॥
कठिन शब्दार्थ - धुवं - ध्रुव, लोगग्गम्मि - लोक के अग्रभाग पर, दुरारुहं - दुरारुहपहुंचने में बहुत कठिन, जरा वेणा जरा - बुढ़ापा, मच्चु - मृत्यु, वाहिणो - व्याधि,
वेदना ।
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णिव्वाणं ति अबाहं ति, सिद्धी लोगग्गमेव य । खेमं सिवं अणाबाहं, जं चरंति महेसिणो ॥ ८३ ॥
भावार्थ - गौतमस्वामी कहते हैं कि लोक के अग्रभाग पर एक ध्रुव (निश्चल) स्थान है जहाँ बुढ़ापा, मृत्यु, व्याधि तथा वेदना नहीं है किन्तु वह स्थान दुरारुह है अर्थात् उस स्थान तक पहुँचना बड़ा कठिन है।
ठाणे य इइ के वुत्ते ? केसी गोयममब्बवी ।
केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ ८२ ॥
कठिन शब्दार्थ - ठाणे स्थान ।
भावार्थ - शीकुमार श्रमण गौतमस्वामी से इस प्रकार पूछने लगे कि वह स्थान कौनसा कहा गया है ? उपरोक्त प्रकार से प्रश्न करते हुए केशीकुमार श्रमण से गौतमस्वामी इस प्रकार कहने लगे।
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