Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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प्रवचन - माता - स्थण्डिल के दस विशेषण
उच्चार - प्रसवण - खेल - सिंघाण - जल्ल-परिष्ठापनिका समिति
उच्चारं पासवणं, खेलं सिंघाण - जल्लियं ।
आहारं उवहिं देहं, अण्णं वा वि तहाविहं ॥ १५ ॥
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कठिन शब्दार्थ - उच्चारं मल, पासवणं मूत्र, खेलं - श्लेष्म- कफ, सिंघाण
सिंघानक - नाक का मैल, जल्लियं - शरीर का मैल, आहारं आहार को, उवहिं - उपधि को, देहं - शरीर को, अण्णं वावि अन्य किसी विसर्जन योग्य वस्तु का, तहाविहं -
तथाविध।
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भावार्थ - पाँचवी परिस्थापनिका समिति कहते हैं- बड़ीनीत ( विष्ठा), प्रस्रवण - लघुनीतं (मूत्र), खंखारा, नाक का मैल, शरीर का मैल, जिस आहार को कारण वश परठना पड़े वैसा विष मिश्रित आहार, जीर्ण वस्त्रादि उपधि, मृत शरीर अथवा इसी प्रकार की अन्य कोई वस्तु जो परठने योग्य हो, इन सब को यतनापूर्वक दस विशेषणों वाले स्थण्डिल में परठे । चार प्रकार की स्थंडिल भूमि
अणावायमसंलोए, परस्सऽणुवघाइए । समे अज्झसिरे यावि, अचिर- कालकयम्मि य ॥१७॥
अणावायमसंलोए, अणावाए चेव होइ संलोए । आवायमसंलोए, आवाए चेव संलोए ॥१६ ॥
आपात ।
कठिन शब्दार्थ - अणावायं असंलोए - अनापात एवं असंलोक, अणावाए संलोए - संलोक, आवायं असंलोए - आपात असंलोक, आवाए भावार्थ - कैसे स्थण्डिल में परठना चाहिए? इसके लिए प्रथम बोल के चार भांगे करके बतलाये जाते हैं - १. जहाँ कोई आता जाता भी न हो और देखता भी न हो और २. जहाँ आता जाता तो कोई नहीं किन्तु दूर खड़ा हुआ देखता हो ३. जहाँ कोई आता जाता तो है, परन्तु देखता नहीं और ४. जहाँ कोई आता जाता भी है और देखता भी है। ये चार भंग हैं। इनमें पहला भंग शुद्ध है। शेष तीन भंग अशुद्ध हैं।
स्थण्डिल के दस विशेषण
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अनापात,
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