Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - तेईसवाँ अध्ययन
केशी श्रमण की ग्यारहवीं जिज्ञासा
साहु गोय! पण्णा ते, छिण्णो मे संसओ इमो । अण्णोऽवि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा ! ॥७४॥
भावार्थ - हे गौतम! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय भी दूर कर दिया है। अब मेरा एक अन्य भी संशय - प्रश्न है । हे गौतम! मुझे उसके विषय में भी कुछ कहें अर्थात् उस प्रश्न का भी समाधान कीजिए ।
अंधयारे तमे घोरे, चिट्ठति पाणिणो बहू ।
को करिस्सइ उज्जोयं, सव्वलोयम्मि पाणिणं ॥ ७५ ॥
कठिन शब्दार्थ - अंधयारे - अन्धकार में, तमे - तम, घोरे घोर भयंकर, चिट्ठतिरह रहे हैं, पाणिणो प्राणियों के लिए, करिस्सइ - करेगा, उज्जोयं - उद्योत (प्रकाश), सव्वलोयम्मि - समग्र लोक में ।
भावार्थ - ग्यारहवाँ प्रश्न जहाँ आँखों की प्रवृत्ति रुक जाने से पुरुष अन्धे के समान बन जाता है ऐसे घोर अन्धकार में बहुत से प्राणी रहते हैं। उन प्राणियों के लिए सम्पूर्ण लोक में कौन उद्योत (प्रकाश) करेगा ?
गौतम स्वामी का समाधान
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उग्गओ विमलो भाणू, सव्वलोय - पभंकरो ।
सो करिस्सइ उज्जोयं, सव्वलोयम्मि पाणिणं ॥ ७६ ॥
कठिन शब्दार्थ - उग्गओ - उदित हो चुका है, विमलो - निर्मल, भाणू - सूर्य, सव्वलोयपभंकरो - समग्र लोक में प्रकाश करने वाला ।
भावार्थ - गौतमस्वामी कहते हैं कि सम्पूर्ण लोक में प्रकाश करने वाला एक निर्मल भानु-सूर्य उदय हुआ है वह प्राणियों के लिए सारे लोक (संसार) में उद्योत करेगा ।
भाणू य इइ के वुत्ते, केसी गोयममब्बवी ।
सिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥ ७७ ॥
भावार्थ - केशीकुमार श्रमण गौतमस्वामी से इस प्रकार पूछने लगे कि वह सूर्य कौन-सा
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