Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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केशि-गौतमीय - गौतम स्वामी का समाधान
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कठिन शब्दार्थ - णिव्वाणं - निर्वाण, अबाहं - अव्याबाध, सिद्धी - सिद्धि, महेसिणोमहर्षि।
भावार्थ - गौतमस्वामी केशीकुमार श्रमण से कहते हैं कि हे मुने! निर्वाण, अव्याबाध सिद्धि, क्षेम, शिव और अनाबाध इत्यादि नामों से कहा जाता है और वह स्थान लोकाग्र पर स्थित है उस स्थान को महर्षि (महात्मा) लोग प्राप्त करते हैं।
__विवेचन - केशीकुमार के प्रश्न का उत्तर देते हुए गौतम स्वामी कहते हैं कि वह स्थान निर्वाण के नाम से प्रसिद्ध है। इसमें सर्वप्रकार के कषायों से निवृत्त होकर परम शांत अवस्था को प्राप्त होने से इसको निर्वाण कहते हैं तथा इसमें सर्व प्रकार की शारीरिक और मानसिक बाधाओं का अभाव होने से इसका ‘अव्याबाध' नाम भी है एवं सर्वकार्यों की इसमें सिद्धि हो जाने से इसका 'सिद्धि' नाम भी है। लोक के अग्र-अन्त भाग में होने से इसको ‘लोकाग्र' के नाम से भी पुकारते हैं। इसमें पहुंचने से किसी प्रकार का भी कष्ट न होने तथा परम आनंद की प्राप्ति होने से इसको 'क्षेम' और 'शिवरूप' तथा 'अनाबाध' भी कहते हैं। परन्तु इस स्थान को पूर्ण रूप से संयम का पालन करने वाले महर्षि लोग ही प्राप्त करते हैं। क्योंकि यह स्थान सर्वोत्तम और सर्वोच्च तथा सबके लिए उपादेय है।
तं ठाणं सासयं वासं, लोगग्गम्मि दुरारुहं। जं संपत्ता ण सोयंति, भवोहंतकरा मुणी॥४॥
कठिन शब्दार्थ - सासयं वासं - शाश्वत वास, संपत्ता ण सोयंति - संप्राप्त करके शोक मुक्त हो जाते हैं, भवोहंतकरा - भव प्रवाह का अंत करने वाले।
भावार्थ - वह स्थान आत्मा का शाश्वत वास है। लोक के अग्रभाग पर स्थित है वह दुरारुह है अर्थात् वहाँ पर पहुँचना अत्यन्त कठिन है। नरकादि भवों की परम्परा का अन्त करने वाले मुनि उस स्थान को प्राप्त होते हैं और वहाँ पहुँचने पर शोक नहीं करते अर्थात् वहाँ पहुँचने के बाद शोक, क्लेश, जन्म, जरा आदि दुःख कभी भी नहीं होते फिर कभी संसार में नहीं आना पड़ता।
विवेचन - प्रस्तुत गाथाओं में शाश्वत सुख स्थान-मोक्ष विषयक जानकारी दी गई है।
बहुत से दार्शनिक मोक्ष को नहीं मानते, स्वर्ग तक ही उनकी अंतिम दौड़ है। कुछ नास्तिक स्वर्ग को भी नहीं मानते, वे इसी लोक में-यहीं सब कुछ मानते हैं। कुछ आस्तिक
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