Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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केशि-गौतमीय - केशी द्वारा गौतम से तृतीय पृच्छा
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अह भवे पइण्णा उ, मोक्ख-सब्भूयसाहणा। णाणं च दंसणं चेव, चरित्तं चेव णिच्छए॥३३॥
कठिन शब्दार्थ - पइण्णा - प्रतिज्ञा, णिच्छए - निश्चय में, मोक्ख सब्भूय साहणामोक्ष के सद्भूत साधनः।
भावार्थ - अथ-भगवान् पार्श्वनाथ की और भगवान् वर्द्धमान स्वामी की दोनों तीर्थंकरों की प्रतिज्ञा तो यही है कि निश्चय में मोक्ष के वास्तविक साधन ज्ञान, दर्शन और चारित्र ही हैं, इसलिए निश्चय में दोनों महापुरुषों की एक ही प्रतिज्ञा है, इसमें कोई मतभेद नहीं है। व्यावहारिक दृष्टि से बाह्य वेष में उपरोक्त कारणों से भेद हैं।
विवेचन - बाह्यवेष मोक्ष साधना में सर्वथा मुख्य साधन नहीं है, निश्चय में तो दोनों महापुरुषों की समान प्रतिज्ञा (सम्मति) है कि रत्नत्रयी ही मोक्ष का मुख्य साधन है। वेष व्यवहारोपयोगी है, असंयम मार्ग का निवर्तक होने से यह कथंचित परम्परा से गौण साधन हो सकता है। अतः दोनों महर्षियों की वेष विषयक सम्मति व्यावहारिक दृष्टि से समयानुसार है इसलिये उनकी सर्वज्ञता में अविश्वास या संशय को कोई स्थान नहीं है।
केशी द्वारा गौतम से तृतीय पृच्छा साहु गोयम! पण्णा ते, छिण्णो मे संसओ इमो। अण्णोऽवि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा!॥३४॥
भावार्थ - हे गौतम! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय भी दूर कर दिया है। ... अब मेरा एक अन्य भी संशय-प्रश्न है। हे गौतम! मुझे उसके विषय में भी कुछ कहें। अर्थात् मेरा जो संशय है उसे भी दूर कीजिए।
अणेगाणं सहस्साणं, मज्झे चिट्ठसि गोयमा!। ते य ते अहिगच्छंति, कहं ते णिजिया तुमे?॥३५॥
कठिन शब्दार्थ - अणेगाणं सहस्साणं - अनेक सहस्र शत्रुओं के, मज्झे - मध्य में, चिट्ठसि - खड़े हो, अहिगच्छंति - सम्मुख आ रहे हैं, णिज्जिया - जीत लिया है। . भावार्थ - तीसरा प्रश्न - हे गौतम! आप अनेक हजारों शत्रुओं के बीच में खड़े हो और वे शत्रु आप पर आक्रमण कर रहे हैं आपने उन सब शत्रुओं को कैसे जीत लिया है?
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