Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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केशि-गौतमीय - केशीश्रमण की पांचवीं जिज्ञासा 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
भावार्थ - हे गौतम! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय भी दूर कर दिया है। अब मेरा एक अन्य भी संशय-प्रश्न है। हे गौतम! मुझे उसके विषय में भी कुछ कहें अर्थात् मेरा जो संशय है उसे भी दूर कीजिए।
अंतो-हिययसंभूया, लया चिट्ठइ गोयमा!। फलेइ विस भक्खीणि, सा उ उद्धरिया कहं॥४५॥
कठिन शब्दार्थ - अंतोहियय संभूया - हृदय के भीतर उत्पन्न, लया - लता, फलेइफल देती है, विसभक्खीणि - विष के तुल्य भक्ष्य, उद्धस्यिा - उखाडी है।
भावार्थ - पाँचवाँ प्रश्न - हे गौतम! हृदय के अन्दर उत्पन्न हुई एक लता है। वह लता विष (जहर) के समान जहरीले फल देती है, उस लता को आपने किस प्रकार उखाड़ कर समूल नष्ट कर दिया है? - तं लयं सव्वसो छित्ता, उद्धरित्ता समूलियं।
विहरामि जहाणायं, मुक्को मि विसभक्खणं॥४६॥
कठिन शब्दार्थ - तं लयं - उस लता को, सव्वसो - सब तरह से, छित्ता - काट' कर, उद्धरित्ता - उखाड़ कर, समूलियं - जड़ सहित, मुक्को मि - मुक्त हूं, विसभक्खणंविषफल खाने से।
भावार्थ - गौतमस्वामी कहने लगे कि मैंने उस लता को सर्वथा छेदन (काट) कर मूल सहित उखाड़ कर के फैंक दिया है, इसी कारण उसके विष समान फल खाने से मैं मुक्त हूँ। अतएव मैं जिनेश्वर देव के न्याय युक्त मार्ग में शांतिपूर्वक विचरता हूँ। .
लया य इइ का वुत्ता? केसी गोयममब्बवी। केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी॥४७॥
भावार्थ - केशीकुमार श्रमण गौतमस्वामी से इस प्रकार पूछने लगे कि वह लता कौन-सी कही गई है? उपरोक्त प्रकार से प्रश्न करते हुए केशीकुमार श्रमण को गौतमस्वामी इस प्रकार कहने लगे।
भवतण्हा लया वुत्ता, भीमा भीमफलोदया। तमुद्धित्तु जहाणायं, विहरामि महामुणी॥४८॥
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