Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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केशि-गौतमीय - केशीश्रमण की आठवीं जिज्ञासा 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - मणो - मन, साहस्सिओ - साहसिक, भीमो - भीम, दुट्ठस्सो - दुष्ट अश्व, परिधावइ - चारों ओर भागता है, सम्मं - सम्यक् प्रकार से, धम्मसिक्खाइ.धर्म की शिक्षा द्वारा।
भावार्थ - मन रूपी साहसिक और भयानक दुष्ट अश्व - दुष्ट घोड़ा चारों ओर भागता रहता है। जिस प्रकार जातिवान घोड़ा शिक्षा द्वारा सुधर जाता है, उसी प्रकार इस मन रूपी घोड़े को सम्यक् प्रकार से धर्म की शिक्षा द्वारा मैं वश में रखता हूँ। _ विवेचन - प्रस्तुत गाथा में मनोनिग्रह का सर्वोत्तम उपाय बताते हुए गौतमस्वामी ने कहा कि - मन अत्यंत साहसी और दुष्ट अश्व है अगर इस पर नियंत्रण और सावधानी न रखी जाए तो यह सवार को उन्मार्ग में ले जाता है। अतः जिस प्रकार विशिष्ट जाति के अश्व को अश्ववाहक सुधार लेता है उसी प्रकार मैंने भी मन रूपी अश्व को धर्मशिक्षा द्वारा वश में कर लिया है। इस कारण यह मुझे उत्पथ में नहीं ले जाता है।
केशीश्वमण की आठवीं जिज्ञासा साहु गोयम! पण्णा ते, छिण्णो मे संसओ इमो। अण्णोऽवि संसओ मज्झं, तं मे कहसु गोयमा!॥५६॥
भावार्थ - हे गौतम! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है। तुमने मेरा यह संशय भी दूर कर दिया है। अब मेरा एक अन्य भी संशय-प्रश्न है। हे गौतम! मुझे उसके विषय में भी कुछ कहें अर्थात् उस संशय का भी आप समाधान कीजिए। - कुप्पहा बहवो लोए, जेहिं णासंति जंतवो।
अद्धाणे कहं वर्सेतो, तं ण णाससि गोयमा?॥६०॥
कठिन शब्दार्थ - कुप्पहा - कुपथ, णासंति - भटक जाते हैं, जंतवो (जंतुणो) - . प्राणी, अद्धाणे - मार्ग पर, वर्सेतो - चलते हुए।
भावार्थ - आठवाँ प्रश्न - लोक में बहुत-से कुपथ - कुमार्ग हैं जिनसे प्राणी भटक जाते हैं। हे गौतम! सुमार्ग में रहे हुए आप कैसे भटकते नहीं हो - नष्ट भ्रष्ट नहीं होते हो?
जे य मग्गेण गच्छंति, जे य उम्मग्ग-पट्ठिया। ते सव्वे वेइया मज्झं, तो ण णस्सामहं मुणी॥६१॥ .
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