Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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केशि-गौतमीय - दोनों तीर्थों के अंतर पर चिंतन
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चाउज्जामो य जो धम्मो, जो इमो पंच-सिक्खिओ। देसिओ वद्धमाणेणं, पासेण य महामुणी॥१२॥
कठिन शब्दार्थ - चाउज्जामो - चतुर्याम, पंचसिक्खिओ - पंच शिक्षित - पांच महाव्रतों के द्वारा शिक्षित अर्थात् प्रकाशित अथवा पंच शैक्षिक-पांच शिक्षाओं से निष्पन्न अर्थात् पंच महाव्रत रूप धर्म, देसिओ - दिया है, वद्धमाणेणं - वर्द्धमान स्वामी ने, पासेण - पार्श्वनाथ भगवान् ने, महामुणी - महामुनि।
भावार्थ - महामुनि पार्श्वनाथ भगवान् ने जो चतुर्याम अर्थात् चार महाव्रत वाला धर्म कहा है और वर्द्धमान स्वामी ने जो यह पाँच महाव्रत वाला धर्म कहा है तो इस भेद का क्या कारण है?
अचेलगो य जो धम्मो, जो इमो संतरुत्तरो। एगकज्जपवण्णाणं, विसेसे किं णु कारणं॥१३॥
कठिन शब्दार्थ - अचेलगो - अचेलक, संतरुत्तरो - सान्तरोत्तर-वर्णादि से विशिष्ट तथा उत्तर-मूल्यवान् वस्त्र वाला, एगकज्जपवण्णाणं - एक ही कार्य-लक्ष्य में प्रवृत्त, विसेसेविशेषता, किं णु कारणं - क्या कारण है।
- भावार्थ - भगवान् वर्द्धमान स्वामी ने जो अचेलक-परिमाणोपेत श्वेत एवं अल्पमूल्य वाले वस्त्र रखने का धर्म कहा है और भगवान् पार्श्वनाथ ने जो यह विशिष्ट एवं बहुमूल्य वस्त्र रखने रूप धर्म कहा है तो मोक्ष प्राप्ति रूप एक कार्य के लिए प्रवृत्ति करने वालों के बाह्य-आचार में इतना अन्तर होने का क्या कारण है? .. विवेचन - उपरोक्त चार गाथाओं में दोनों महामुनियों के शिष्यों में एक दूसरे को देखने से जो जिज्ञासा मूलक चिन्तन हुआ, उसके कारण इस प्रकार है - .
१. हमारा धर्म कैसा है और गौतम के शिष्यों का धर्म कैसा है? २. दोनों धर्मों की वेष आदि आचार व्यवस्था में भेद क्यों?
३. भगवान् पार्श्वनाथ का चतुर्याम धर्म अर्थात् अहिंसा, सत्य, अस्तेय और बहिद्धादान विरमण (अपरिग्रह) रूप धर्म और भगवान् महावीर स्वामी का पंच शिक्षा (अहिंसा, सत्य, चौर्यत्याग, ब्रह्मचर्य एवं परिग्रह त्याग रूप) धर्म है। इन दोनों की व्रत संख्या में अन्तर क्यों?
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