Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - तेईसवाँ अध्ययन 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 . कठिन शब्दार्थ - चाउज्जामो - चतुर्याम, पंचसिक्खिओ - पंच शिक्षात्मक (पांच महाव्रत रूप) धर्म, देसिओ - बताया है, वद्धमाणेण - वर्द्धमान ने, महामुणी पासेण - महामुनि पार्श्वनाथ ने।
भावार्थ - पहला प्रश्न - महामुनि पार्श्वनाथ भगवान् ने जो यह चार याम (महाव्रत) वाला धर्म कहा है और भगवान् वर्द्धमान स्वामी ने जो यह पाँच महाव्रत वाला धर्म कहा है।
एगकज पवण्णाणं, विसेसे किं णु कारणं!। धम्मे दुविहे मेहावि! कहं विप्पच्चओ ण ते?॥२४॥
कठिन शब्दार्थ - एगकज्जपवण्णाणं - एक कार्य (मोक्ष साधन रूप एक ही कार्य) में प्रवृत्त, विसेसे - विशेषता, किं णु कारणं - क्या कारण है, दुविहे धम्मे - दो प्रकार के धर्मों में से, मेहावि - हे मेधाविन्! विप्पच्चओ - विप्रत्यय-सन्देह।
'भावार्थ - एक ही कार्य (मोक्ष प्राप्ति रूप कार्य) के लिए प्रवृत्ति करने वालों में परस्पर विशेषता का क्या कारण है अर्थात् इस दो प्रकार के धर्म के विषय में हे मेधाविन्! क्या आपको संशय नहीं होता? अर्थात् भगवान् पार्श्वनाथ और भगवान् वर्द्धमान स्वामी दोनों सर्वज्ञ हैं तो फिर मतभेद का क्या कारण है?
- गौतमस्वामी का समाधान तओ केसि बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी। पण्णा समिक्खए धम्म, तत्तं तत्तविणिच्छियं॥२५॥ ..
कठिन शब्दार्थ - पण्णा - प्रज्ञा (बुद्धि), समिक्खए - समीक्षा करती है, धम्मं तत्तं - धर्म तत्त्व की, तत्तविणिच्छियं - तत्त्व के विनिश्चय वाले।
भावार्थ - इसके बाद इस प्रकार कहते हुए केशीकुमार श्रमण से गौतमस्वामी इस,प्रकार कहने लगे कि जीवादि तत्त्वों का जिसमें निश्चय किया जाता है ऐसे धर्म तत्त्व को बुद्धि ही ठीक समझ सकती है अर्थात् बुद्धि के द्वारा ही तत्त्वों का निर्णय होता है।
पुरिमा उजुजडा उ, वंक्कजडा य पच्छिमा। मज्झिमा उजुपण्णा उ, तेण धम्मे दुहा कए॥२६॥
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