Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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रथनेमीय - रथनेमि पुनः संयम में दृढ़ 0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000 भी यह गाथा नहीं है, इतना ही नहीं गाथा ४२ भी नहीं है और कुल ४६ गाथाएं ही हैं। हमारे विचार से इसमें जो क्रम और अर्थ दिया वही उपयुक्त लगता है।
कोहं माणं णिगिण्हित्ता, माया लोभं च सव्वसो। इंदियाई वसे काउं, अप्पाणं उवसंहरे॥४॥
कठिन शब्दार्थ - कोहं - क्रोध को, माणं - मान को, णिगिण्हित्ता - निग्रह करके, माया लोभं च - माया और लोभ को, सव्वसो - पूर्णतया, इंदियाई - इन्द्रियों को, वसे काउं - वश में करके, अप्पाणं - अपनी आत्मा को, उवसंहरे - उपसंहार किया, स्थिर किया।
भावार्थ - क्रोध, मान, माया और लोभ इन सब को सर्वथा प्रकार से निग्रह कर (जीत कर) और पाँचों इन्द्रियों को वश में कर के अपनी आत्मा को वश में कर लिया।
मणंगुत्तो वयगुत्तो, कायगुत्तो जिइंदिओ। सामण्णं णिच्चलं फासे, जावजीवं दढव्वओ॥४६॥
कठिन शब्दार्थ - मणगुत्तो - मन गुप्त, वयगुत्तो - वचन गुप्त, कायगुत्तो - कायगुप्त, जिइंदिओ - जितेन्द्रिय, सामण्णं - साधु धर्म का, णिच्चलं - निश्चल हो कर, फासे - स्पर्श किया, जावजीवं - जीवन पर्यन्त, दढव्वओ - व्रतों में दृढ़।
__ भावार्थ - मन-गुप्त, वचन-गुप्त, काय-गुप्त, जितेन्द्रिय, व्रतों में दृढ़ एवं निश्चल होकर उस रथनेमि ने जीवनपर्यन्त साधु-धर्म का पालन किया।
विवेचन - उपरोक्त गाथाओं (क्र. ३६-४६) में राजीमती द्वारा रथनेमि को दिये हृदयग़ाही उद्बोधन का वर्णन किया गया है। राजीमती के वचनों को सुन कर रथनेमि पुनः संयम में स्थिर हो गये।
- राजीमती ने रथनेमि के निर्बल मन को सबल बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दे कर नारी जीवन के गौरव का मानदण्ड कायम किया और बताया कि नारी की निर्बलता का कारण उसकी आकांक्षा और स्नेह का बन्धन है। जब नारी उन आकांक्षाओं को ठुकरा कर ज्ञान वैराग्य में रम जाती है तो वह बड़ी से बड़ी शक्ति को परास्त कर स्वयं तो संसार से पार हो जाती है किंतु अन्य आत्माओं को भी ज्ञानामृत का पान करा कर सबल बना देती है और संसार से पार पहुंचाने में सहायक बन जाती है। नारी जीवन का यह आदर्श आज भी महिला जगत के लिये प्रेरणास्पद है। .
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