Book Title: Uttaradhyayan Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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उत्तराध्ययन सूत्र - बाईसवाँ अध्ययन
केश लोच
अह सो सुगंधगंधिए, तुरियं भउकुंचिए ।
सयमेव लुंच केसे, पंच - मुट्ठीहिं समाहिओ ॥२४॥ कठिन शब्दार्थ - सुगंधगंधिए - सुगंध से सुरभित, तुरियं तुरन्त, मउकुंचिए कोमल और घुंघराले, सयमेव स्वयमेव, लुंचइ केसे - केशों का लोच किया, पंचमुट्ठीहिंपंचमुष्टि, समाहिओ - समाहित - समाधि सम्पन्न ।
भावार्थ - इसके पश्चात् समाधिवान् उन भगवान् अरिष्टनेमि ने सुगंध वासि और आकुञ्चित - टेडे मुडे हुए केशों का स्वयमेव शीघ्र ही पंचमुष्टि लोच कर डाला ।
विवेचन - पंचमुष्टि लोच का अर्थ पांच मुष्टियों में सब केशों का लोच कर देना यह अर्थ नहीं है किन्तु पांच तरफ से केशों का लोच करना अर्थात् दाहिनी तरफ के केशों को दाहिनी तरफ से खींचकर लोच करना, इसी प्रकार बायीं तरफ, आगे की तरफ, पीछे की तरफ और ऊपर की तरफ खींच कर, केशों का लोच करना । इस प्रकार पंचमुष्टि का अर्थ समझना चाहिये। गर्दन से ऊपर दाढ़ी, मूंछ और मस्तक का लोच किया जाता है।
वासुदेव आदि का आशीर्वाद
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वासुदेवो य णं भण, लुत्तकेसं जिइंदियं ।
इच्छिय-मणोरहं तुरियं, पावसु तं दमीसरा ॥ २५ ॥
कठिन शब्दार्थ वासुदेवो - वासुदेव, भणइ कहा, लुत्तसं हुए, जिइंदियं - जितेन्द्रिय, इच्छिय मणोरहं - इच्छित मनोरथ को, पावसु दमीसरो - हे दमीश्वर !
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भावार्थ - वासुदेव और बलराम, समुद्रविजय आदि केशों का लोच किये हु जितेन्द्रिय अरिष्टनेमि को कहने लगे कि हे दमीश्वर ! शीघ्र ही मुक्ति प्राप्ति रूप इच्छित मनोरथ को प्राप्त करो ।
विवेचन सत्पुरुष श्रेष्ठ कार्य में प्रवृत्त होने वाले व्यक्ति को प्रोत्साहन देने के साथ साथ आशीर्वाद देना अपना कर्त्तव्य समझते हैं ताकि वह उत्साह पूर्वक मार्ग में लग कर अपने उद्देश्य में शीघ्र सफल हो सके। इसी कारण नवदीक्षित भगवान् अरिष्टनेमिनाथ को श्रीकृष्ण • वासुदेव और बलदेव, समुद्रविजय आदि ने सम्मिलित होकर आशीर्वाद के रूप में
केशलोच किये प्राप्त करो,
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