Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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उपमिति भव-प्रपंच कथा
के आधार पर, इसका रचना-काल द्वितीय शतक माना जा सकता है । तीसरी शताब्दी में इसका चीनी अनुवाद हुआ था ।
'दिव्यावदान' भी बौद्धकथाओं का एक संकलन है । यह ग्रन्थ, पूर्णत: गद्य में है । किन्तु बीच-बीच में जो गाथायें इसमें दी गई हैं, वे, छन्दबद्ध तो हैं ही, उनमें आलंकारिकता भी अच्छे स्तर की है । ग्रन्थ में अशोक से सम्बन्धित कथाएं हैं । इन कथाओं की ऐतिहासिकता और मनोरञ्जकता तो असंदिग्ध है, परन्तु इसकी भाषा को, पाली के सम्पर्क से मिश्रित होने के कारण, तथा कुछ स्थलों पर, भ्रष्ट भाषा का भी प्रयोग होने के कारण, भाषा-शास्त्रियों ने एक अलग प्रकार की धारा में प्रवाहित भाषा माना है । इसी तरह, इसमें संकलित कथाओं के कहने का ढंग भी अस्त-व्यस्त और बेतुका सा है ।
समग्र बौद्ध साहित्य में 'त्रिपिटक' प्रमुख है । ये त्रिपिटक हैं- विनयपिटक, सुत्तपिटक और अभिधम्मपिटक । तथागत बुद्ध ने भिक्षुनों के आचरण को संयमित रखने के लिये जो नियम बनाये, उन्हीं की चर्चा 'विनयपिटक' में है । 'सुत्तपिटक' में, बुद्ध के उपदेशों और संवादों का संग्रह है । महाभारत के सुप्रसिद्ध यक्ष-युधिष्ठिर संवाद की तरह का यक्ष-युद्ध संवाद भी इसी संग्रह में है । इसी संग्रह में संकलित 'जातक' में. बुद्ध के पूर्व जन्म के सदाचारों की अभिव्यक्ति करने वाली कथायें हैं । बौद्धधर्म कथानों में इसका विशेष महत्त्व है । 'बुद्धवंश' में, गौतम बुद्ध से पूर्व के चौबीस बुद्धों का जीवन-चरित वर्णित है । इनमें समाहित कथा साहित्य बौद्ध धर्म कथा का उत्कृष्ट साहित्य माना जा सकता है । 'अभिधम्मपिटक' में गौतम बुद्ध के उपदेशों के आधार पर, उनके दार्शनिक विचारों की व्यवस्था की गई है ।
'विनयपिटक' के खन्दकों में, नियमों और कर्त्तव्यों के निर्देश के साथ-साथ अनेक आख्यान भी मिलते हैं । 'चुल्लवग्ग' में संवादात्मक और चरित सम्बन्धी अनेकों कथाएं हैं । 'दीघनिकाय' 'मज्झिमनिकाय' और 'सुत्तपिटक' में भी, बहुत सारे आख्यान हैं । इसी तरह, 'विमानवत्थु', 'पेत्थवत्थु', 'थेरी गाथा' और 'थेर गाथा' में भी कई तरह की कथाएं हैं । इन सबको देखने से यह सहज ही अनुमान हो जाता है कि जातक - साहित्य, उपदेशपर्ण मनोरञ्जक कथाओं / श्राख्यानों का विशाल भण्डार है । जिसके प्रभाव से, उत्तरवर्ती साहित्य भी अछूता नहीं रह सका ।
पालि त्रिपिटक की गाथाएं, बहुत प्राचीन हैं। उसमें प्रयुक्त छन्द, वाल्मीकि रामायण से भी प्राचीन हैं । कुछ गाथाएं तो वैदिक युग की हैं । 2 इन्हीं गाथाओं को स्पष्ट करने के लिये, जातक कथाएं कही गई हैं । बौद्ध धर्म का यथार्थ- परिचय
१.
२.
प्रोल्डेन वर्ग — गुरुपूजाकौमुदी, पृष्ठ-६०, दीघनिकाय - सम्पा. ह्रीस डेविडस एण्ड कारपेन्टर–वाल्यूम-I, इन्ट्रोडक्शन --पृष्ठ८
डॉ० बिन्टर निरज - हिस्ट्री ऑफ इन्डियन लिट्रेचर-II, P. १२३
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