Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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रत्नों के, सुवर्ण और रजत के, सूवर्ण और रत्न के, रजत और रत्न के, सुवर्ण रजत और रत्न के, ऐसे ही मिट्टी के इस भांति पाठ रकम के प्रत्येक प्रकार के एक हजार पाठ सुन्दर कलशों का निर्माण किया। कलशों की संख्या के अनुपात में आठ प्रकार के पदार्थों की झारी, दर्पण, रत्न करण्डिका, सुप्रतिष्ठक, थाल, राचिका व पुष्पों की डाली का निर्माण किया। तत्पश्चात् देव क्षीरसमुद्रादि समुद्र और तीर्थादि से जल और मानन्दित करने के लिए मिट्टी और कमल तोड़कर ले आए; क्षुद्र हिमवत से औषधि, भद्रशाल से केशर एवं अन्य सुगन्धित द्रव्य ले आए। उन सभी सुगन्धित द्रव्यों को भक्तिवश तत्क्षण जल में डालकर तीर्थजल को सुवासित किया ।
(श्लोक १८३-१८८) देवताओं द्वारा प्रदत्त कलशों से भौर प्रवाल वक्ष के पूष्पों से अच्युतेन्द्र ने प्रभु को स्नान कराया। जिस समय वे प्रभु को स्नान करा रहे थे प्रानन्द भरे देवगणों में कोई गाने लगा, कोई नत्य करने लगा, कोई कौतुक अभिनय करने लगा। तदुपरान्त पारण
और अच्युतेन्द्र देव ने भक्ति भाव से प्रभु की देह को पोंछकर दिव्य गन्ध द्रव्य का लेपन किया एवं अपना भक्ति भाव निवेदित किया। शक्र के पश्चात् अन्य बासठ इन्द्रों ने भक्ति भाव सहित प्रभु को स्नान कराया। पृथ्वी को पवित्र करने का यही तो एक मात्र साधन
___ (श्लोक १८९-१९२) शक्र की भांति ईशानेन्द्र ने भी पांच रूप धारण किए । एक रूप से उन्होंने प्रभु को गोद में लिया, दूसरे रूप में छत्र धारण किया। अन्य दो रूपों से चँवर हाथ में लिया और शेष एक रूप में प्रभु के सम्मुख खड़े हो गए। भक्ति में प्रौढ़ शक्र ने प्रभु के चारों ओर दोघं शृङ्ग विशिष्ट चार स्फटिक मणि के वृषभ तैयार करवाए। उनके शृङ्गों से जलधारा ऊपर की ओर उठने लगी। मूल में पृथक्-पृथक् ; किन्तु ऊपर जाकर वे एक साथ मिलकर प्रभु पर बरसने लगी। इस भांति सौधर्म कल्प के इन्द्र ने अत्यधिक भक्तिवश प्रभु का स्नानाभिषेक कराया जो कि अन्यान्य इन्द्रों से विशिष्ट था। तदुपरान्त उन चारों वृषभों को नष्ट कर शक ने प्रभु की देह पर अङ्गराग किया और पूजा कर भक्ति भाव से प्रानन्दमना बने इस प्रकार स्तुति करने लगे-'हे त्रिलोकीनाथ, तीनों लोक के