Book Title: Trishashti Shalaka Purush Charitra Part 3
Author(s): Ganesh Lalwani, Rajkumari Bengani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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अग्रसर होकर उन्हें वन्दना की । शक्र के सेनापति ने घण्टा बजाया। तीर्थङ्कर भगवान् के स्नानाभिषेक के लिए उत्सुक देव उनके निकट आकर खड़े हो गए।
(श्लोक १६१-१६३) शक्र देवताओं सहित पालक विमान पर चढ़े और नन्दीश्वर होते हुए जिनेश्वर के प्रावास पर पाए । विमान में बैठे हुए ही तीर्थङ्कर के जन्मगह के चारों ओर परिक्रमा देकर, विमान को ईशान कोण में रखकर वे विमान से बाहर पाए। तदुपरान्त सूतिकागह में गए और भगवान् को देखते ही उन्हें प्रणाम किया। तीर्थङ्कर और उनकी माता को तीन प्रदक्षिणा देकर भूमि-स्पर्श पूर्वक उन्हें पुन:पंचांग प्रणाम किया। माता को अवस्वापिनी निद्रा से निद्रित कर उनके पास तीर्थङ्कर का एक प्रतिरूप रखकर स्वयं पांच रूप धारण किए। फिर एक रूप से उन्होंने उसे हाथों में लिया, दूसरे रूप से छत्र धारण किया, अन्य दो रूपों से चँवर धारण किया और शेष एक रूप से वज्र हाथ में लेकर उनके प्रागेआगे चले। तदुपरान्त जय-जय शब्द से आकाश गुञ्जित कर देवताओं द्वारा परिवृत्त होकर वे एक मुहूर्त में मेरुपर्वत पर पहुंच गए। वहां प्रतिपाण्डकवला शिला पर शक त्रिभुवनपति को गोद में लेकर रत्न-सिंहासन पर बैठ गए।
(श्लोक १६४-१७१) सिंहासन कम्पित होने से अच्युतेन्द्र ने अवधिज्ञान का प्रयोग किया और अनुरूप भाव से प्राणत सहस्रार, महाशुक्र, लान्तक, ब्रह्म, महेन्द्र, सनत्कुमार, ईशान, चमर, बलि, धरण, भूतानन्द, हरि, हरिष, वेणुदेव, वेणुदारी, अग्निशिख, अग्निमानव, वेलम्भ, प्रभंजन, सुघोष, महाघोष, जलकान्त, जलप्रभ, पूर्ण, अवशिष्ट, अमित, अमितवाहन, काल, महाकाल, सुरूप प्रतिरूपक, पूर्णभद्र, मणिभद भीम, महाभोम, किन्नर, किंपुरुष, सत्पुरुष, महापुरुष, अतिकाय, महाकाय, गीतरति, गीतयश, सन्निहित, समानक, धातृ, विधातृ, ऋषि, ऋषिपालक, ईश्वर, महेश्वर, सुवत्सक, विशालक, हास, हास रति, श्वेत, महाश्वेत, पावक, पावकगति, सूर्य, चन्द्र ये त्रेसठ इन्द्र परिजन सहित प्राडम्बरपूर्वक इस भांति मेरुपर्वत पर तीर्थंकर के जन्माभिषेक के लिए उपस्थित हुए मानो प्रतिवेशी के घर से पाए हों।
(श्लोक १७२-१८२) अच्युतेन्द्र के नादेश से श्वाभियोगिक देव, सुवर्ण के, रजत के,